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वे न्याय-दर्शन के महापंडित थे। तर्क करने में और तर्क का उत्तर देने में उनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता था। उनकी समझाने की शक्ति इतनी सरल और हृदयंगम थी कि सामान्य से सामान्य और अनपढ़ से अनपढ़ जन भी भलीभांति उसे ग्रहण कर लेता था। एक श्रावक ने उनसे प्रश्न किया कि हमें मक्खन क्यों नहीं खाना चाहिए?
तब उन्होंने उत्तर दिया- मक्खन अभक्ष्य है, क्योंकि जैन शास्त्र के अनुसार छाछ से अलग हुए मक्खन को जब अन्तर्मुहूर्त, ४८ मिनट हो जाते हैं तो उसमें मक्खन के रंग के सूक्ष्म जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए मक्खन खाना वर्जित है। मक्खन निकाल कर उसे गरम करके घी निकाल कर खाना चाहिए । इस तरह से जीव हिंसा नहीं होती।
ऐसे गुण रत्नाकर गुरु की स्वर्गारोहण शताब्दी पर हम हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और वीतराग देव से प्रार्थना करते हैं कि ऐसे महर्षि के बताए हुए मार्ग पर चलने की हमें शक्ति प्रदान करें।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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