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छिपाया नहीं।
_वे एक ऐसे महापुरुष थे, जो जन्म से ही निडर थे। निर्भीक थे। वीरता उनका निजगुण था । अनका मुख्य एवं प्रधान गुण था निडरता । इसी गुण ने उन्हें सत्य से विचलित नहीं किया।
_ वे ऐसे समय में पैदा हुए, जब चारों ओर मिथ्या अंधकार छाया हुआ था । वे सत्य की राह पर चलने वाले युगपुरुष थे। उनकी दृढ़ता और निर्भीकता ने उन्हें चलायमान नहीं किया और इसी माध्यम से वे अपनी मंजिल के निकट पहुँच पाए।
जिनवाणी पर उन्हें अपूर्व आस्था थी। जिनवाणी के आलोक में उन्होंने सत्य को जाना। सत्य को समझना सरल है । सत्य को स्वीकारना अत्यंत कठिन है।
उन्होंने केवल सत्य को जाना ही नहीं, उसे स्वीकार भी किया।
आत्मारामजी परमात्मा के परम भक्त थे । सत्य स्वरूप जानने पर उन्हें प्राचीन मूर्तिपूजक परंपरा को स्वीकार करने में संकोच नहीं हुआ। जिनभक्ति की धारा को बहाने के लिए उन्होंने जगह-जगह जिनमंदिर स्थापित किए। इस माध्यम से उन्होंने संघ व समाज को भक्तिमार्ग की और अग्रसर किया।
भक्ति की पावन गंगा में डुबकी लगाते हुए उनके हृदय से जो स्त्रोत बहा, वह अत्यंत मार्मिक है । रोमांचित और भाव विभोर करने वाला है।
पालीताणा महातीर्थ गिरिराज पर आदिनाथ भगवान की भक्ति में प्रस्फुटित शब्द और भाव अत्यंत हृदय द्रावक है । वह स्तवन निम्न है।
अब तो पार भये हम साधो, श्री सिध्याचल दर्श करीरे । आदीश्वर जिन मेहर करी अब, पाप पटल सब दूर भयो रे ।
तन मन पावन भविजन केरो, निरखी जिनंद चंद सुख थयो रे। भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित होकर उन्होंने यह कहा कि सिंद्धाचल महातीर्थ एवं श्री आदिनाथ प्रभु के दर्शन से संसार सागर से हम पार हो गए हैं।
अभी संसार से पार नहीं हुए क्योंकि पंचम आरे में मुक्ति नहीं है। फिर भी उन्होंने यह कहा कि हम पार हो गए। क्या यह बात उनकी सही है?
यह कथन उनका सत्य है। क्योंकि सत्य तत्व पाने के पश्चात् साधक सत्यपथ पर आरूढ हो जाता है, तब वह पथ मंजिल को उपलब्ध करा देता है।
__परमात्मा के दर्शन में जब आत्मदर्शन होते हैं, तब प्रतीति हो जाती है कि अब आत्म
कर्मयोगी श्री आत्माराम जी
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