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गुरु विजयानंदः स्मृति के वातायन से
- आचार्य श्री विजय जनकचन्द्र सूरि सूत्रकृतांग में एक सूक्ति आती है- “ते अत्तओ पासई सव्वलोए” तत्वदर्शी समग्र प्राणी जगत को अपनी आत्मा के समान देखता है। ऐसे सच्चे तत्वदृष्टा नवयुग निर्माता, पंजाब देशोद्धारक जैनाचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वरजी म. सा. थे। मुझे परम पूज्य गुरुदेव आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. सा. के साथ कई चातुर्मास करने का सौभाग्य मिला है। पूज्य गुरुवर श्री आत्मारामजी म. सा. के सम्बन्ध में हमें अपने विविध संस्मरण सुनाया करते थे। जिनमें से कतिपय का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूँ।
एक बार गुरु वल्लभ ने सुनाया कि मैं दीक्षा के बाद पूज्य गुरुदेव (श्री आत्मारामजी) के साथ ही चातुर्मास करता था और प्रारम्भ से ही मैंने उनके पत्र व्यवहार का कार्य संभाल लिया था । मैं सभी में छोटा था, अत: सभी का स्नेह मिलता था सभी विनोद में मुझे प्राईवेट सैक्रेटरी कहा करते थे। रॉयल एशियाटिक सोसाइटी का सदस्य डॉ. ए एफ. रुडाल्फ को जो भी पत्रोत्तर देना होता था, उसे गुरुवर पेन्सिल से लिख देते थे और मैं बाद में स्याही से पुनर्लेखन कर दिया करता था। जब शिकागो में आयोजित धर्मसम्मेलन से गुरुदेव को निमंत्रण पत्र आया और कई महत्त्वपूर्ण विद्वानों ने आपसे सम्मेलन में भाग लेने की प्रार्थना की तो गुरुवर बोले कि “श्रमण संस्कृति की मर्यादा के बाहर जाकर मैं कोई कार्य नहीं कर सकता” तब उनसे कहा गया कि आप अपना कोई प्रतिनिधि भेजें जो आपका संदेश उस सभा में दे । आचार्यप्रवर ने जो अपना संदेश तैयार किया, उसका पुनर्लेखन कर मैंने श्री वीरचन्द राघवजी को दिया था। उन्होंने उस धर्मसम्मेलन में पूज्य आत्मारामजी का प्रभावी संदेश सुनाकर समस्त प्रतिनिधियों व श्रोताओं को
गुरु विजयानंदः स्मृति के वातायन स
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