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महाराज | जिनकी स्वर्गारोहण शताब्दी मनाने का यह उपक्रम है। 1
वे भगवान महावीर स्वामी की शास्त्र सम्मत आचार परंपरा के रक्षक और पालक थे । उन्होंने शास्त्र - मार्ग की कोई नई परंपरा नहीं चलाई। उन्होंने तो केवल उस परंपरा को पुनर्जीवित और संमार्जित करने का कार्य किया जो किसी नई परंपरा चलान से भी अधिक कठिन और महत्त्वपूर्ण था। उस परंपरा को उन्होंने तेजस्वी, मनस्वी और वर्चस्वी बनाया । उसे सम्मानीय स्थान देकर उसका अभिनंदन किया। यह कार्य कर उन्होंने जिनेश्वर परमात्मा के द्वारा प्ररूपित सत्य मार्ग के प्रति अपनी पूर्ण श्रद्धा, समर्पण और वफादारी का परिचय दिया। उनका यह परिचय ही उनके महान व्यक्तित्व की सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ट पहचान है ।
उनका अवतरण तब हुआ है जब प्राचीनता और आधुनिकता का संधिकाल चल रहा था । मध्यकालीन सामंती युग की अंतिम सांसें चल रही थी और आधुनिक युग बोध के चिंतन का सूत्रपात हो गया था। प्राचीन और अर्वाचीन युग के सेतु बने हैं- आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज ।
वे नव युग निर्माता थे और उनकी दूरगामी दृष्टि ने अनेक संभाव्य यथार्थों को देख-परख लिया था । इसीलिए उन्होंने श्रीवीरचंद राघवजी गांधी को जैन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विदेश भेजा । अपने शिष्य मुनि श्रीकांति विजयजी महाराज एवं मुनि श्रीहंस विजयजी को नष्ट होरहे ज्ञान भंडारों के उद्धार की प्रेरणा की। आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज को विद्यालयों के लिए आदेश दिया। तत्कालीन युग को जागृत करने और प्रबुद्ध करने के लिए उन्होंने अनेक ग्रन्थों का सृजन किया। उस समय जब आधुनिक खड़ी बोली का रूप निखरा नहीं था उन्होंने इसी खड़ी बोली हिन्दी में पूजाओं, स्तवनों और सज्झायों की रचना की ।
उनके समय में उनके समकक्ष जैन धर्म, दर्शन, इतिहास और साहित्य आदि का पारगामी विद्वान कोई नहीं था। उस समय चारों ओर से जैन धर्म के ऊपर हो रहे झूठे प्रचार, मनगढंत आक्षेप और अनुचित विरोध का उन्होंने महाबली योद्धा की भांति जैन धर्म की रक्षा की । असत्य, अज्ञान और भ्रांतियों के गढ़ विदीर्ण कर उन्होंने सत्य, ज्ञान और निर्भ्रम का दिव्य प्रकाश सर्वत्र बिखेर दिया । इसीलिए जैन दर्शन के विदेशी विद्वान ए. एफ. रुडोल्फ को यह कहना पड़ा किदुराग्रह ध्वान्त विभेद भानो, हितोपदेशामृत सिन्धुचित्ते ।
संदेह सन्दोह निरासकारिन्, जिनोक्त धर्मस्य धुरंधरोसि ॥
दुराग्रह रूपी अंधकार को नष्ट करने में आप सूर्य समान हैं। हितकारी उपदेशामृत के एक
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