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नागकेतु पूर्व भव में वणिक पुत्र के रूप में अठम तप की आराधना फलस्वरूप श्रीकान्त शेठ के वहां जन्मे नागकेतु को जाति स्मृण ज्ञान होने से नवजात शिष्य ने इस बार भी पर्दूषण पर्व में अट्ठमतप की आराधना कर नागराज धरणेन्द्र के बड़े कृपापात्र बने और एक दिन प्रभु भक्ति में लीन नागकेतु के हाथ में पुष्पों से भरे थाल में से एक सर्प ने नागकेतु को डस लिया परन्तु प्रभुभक्ति में इतने मग्न हो गये कि क्षपक श्रेणी पर चढते चढते केवलज्ञान को प्राप्त किया।
लंधक मुनि धर्म घोष मुनि के शिष्य खंधक मुनि कठोर तपस्वी थे और छट्ठव अट्ठम के तप करते थे। एक बार विहार करते हुये राजमहल के पास से गुजर रहे थे उस वक्त राणी ने उनको देखा जो उनकी बहन थी और जब ाणी ने मुनि के जर्जरीत शरीर को देखा तो उनकी आँखों में आंसू आ गये । पास खड़े राजा ने यह सब देखा और सोचा कि कहीं यह राणी का कोई पहले का यार तो नहीं है सो राजा ने सेवकों को आज्ञा की कि इस मुनि की चमड़ी उधेड़ ली जाय । मुनि को जब सेवकों ने पकड़ा तो मुनि ने सोचा कि मेरे लिये यह कर्म खपाने का सुनहरा मौका है सो सेवकों को कोई भी तरह की तकलीफ न हो मन (त्याग कर) वोसरा दिया। चड़ चड़ चामड़ी के उतरते उतरते ध्यानमग्न मुनि घड़घड़ाते शुक्ल धान्य को चडते गये और केवलज्ञान को प्राप्त किया।
स्कन्दकाचार्य के ५०० शिष्य प्रभु मुनि सुव्रतस्वामी के पास ५०० शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण कर स्कन्दकाचार्य कुंभकार नगरी में विहार करते हुये पधारे। पूर्व भव के वैर से वहां के मंत्री ने आचार्य जहां ठहरे हुये थे वहां बाहर अस्त्र-शस्त्र जमीन के अन्दर छिपा दिये और राजा को बताया कि स्कन्दकाचार्य आपके राज्य को जीतने के लिये साधु वेश में ५०० सुमटो को साथ में लाये हैं। जब राजा ने छिपाये गये शस्त्रों को देखा तो आगबबूला हो सभापति को आज्ञा कि इन सब को घाणी में पीस लो। सेनापति ने एक एक करके सब मुनियों को घाणी में पीस डाला और स्कन्दकाचार्य को अधिक दुखी करने के उद्देश से घाणी के सामने बांध कर खड़ा किया। ५०० मुनि तो प्रभु मुनिसुव्रत स्वामी के कहे अनुसार कि वहां तुम्हारा मोक्ष होगा- सम्यक प्रकार से आलोचना लेकर सर्व जीवों को खमाते खमाते क्षपक श्रेणी को चढते हुये केवलज्ञान को प्राप्त कर मोक्ष को गये। परन्तु स्कन्दकाचार्य अपनी बारी आने पर क्रोधी बने और राजा और मंत्री को शिक्षा देने के विचार से भव भ्रमण में भटक गये।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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