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अत्यन्त क्रोधवश होकर वहां श्मशान में पड़े अग्निशंखों को मुनिगज सुकुमाल के सिर पर रख दिया। मुनि ध्यानमग्न थे और असह्य पीड़ा को सहन करते हुये और यह सोचते सोचते कि मेरे श्वसुर ने मुझे मोक्ष की पागड़ी बन्धा दी है केवलज्ञान को प्राप्त कर मोक्ष को गये।
इलाचीपुत्र इलाचीपुत्र एक श्रेष्ठि के पुत्र थे पर नगर में आये नट के खेल देखते हुये नट की पुत्री के मोह में पड़ गये थे और नट पुत्री को प्राप्त करने हेतु स्वयं नट बन उन्हीं के साथ अद्भुत खेल करते रहे। एक बार बेनातट नगर में इलाचीपुत्र डोरी पर चढ़ बांस को घुमाते हुये अति आश्चर्यजनक खेल करने लगे परन्तु नट राजा को तो वह प्रसन्न नहीं कर सके परन्तु उस समय थोड़ी दूर एक मुनि भगवंत को देखा जिनको एक अति सुन्दर स्त्री वोहरा रही थी मगर मुनिराज सिर्फ नजरों से ही देख रहे थे। यह दृश्य देख इलाचीपुत्र वैराग्य की भावना भाते रहे और अपने को धिक्कारते हुये केवलज्ञान को प्राप्त हुये।
ढंढण कुमार श्रीकृष्ण वासुदेव की एक पत्नी ढंढणा के पुत्र का नाम ढंढणकुमार था। वैराग्यभावना उत्पन्न होने पर भगवान नेमीनाथ के पास उन्होंने दीक्षा अंगीकार की। परन्तु उनके पूर्व के कर्म का ऐसा उदय था कि जब भी वे गोचरी जाते उन्हें विशुद्ध आहार प्राप्त नहीं होता था। अत: उन्होंने यह अभिग्रह धारण किया कि अगर उनको स्वलब्धि से ही भिक्षा मिलेगी तो वे उसे ग्रहण करेंगे। एक बार ऐसा हुआ कि जब वे द्वारका नगरी में भिक्षा के लिये घूम रहे थे तो संयोगवश श्रीकृष्ण वहां से जा रहे थे तो श्रीकृष्ण ने वाहन से उतर कर मुनि भगवंत को वंदना की और यह दृश्य देख किसी श्रेष्ठि ने ढंढक मुनि को विशुद्ध मोदक वोहराये । परन्तु मुनि ने सोचा कि यह आहार मेरी स्वयं की लब्धि से मुझे प्राप्त नहीं हुआ है । इसलिये उन मोदको को वे कुम्हारशाला में परठने गये और वहां मुनि को मोदक परठते परठते उत्तम भावना भाते केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
मेतार्य मुनि चंडाल पुत्र मेतार्य का राजगृही नगरी में एक श्रेष्ठि के वहां लालन पालन हुआ और अपने अद्भुत कौशल द्वारा श्रेणिक राजा के जमाई बने परन्तु बारह वर्ष के लग्नजीवन के पश्चात उन्होंने अट्ठाईस वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की । एक बार गोचरी लेने जाते हुये एक सोनी के वहां पधारे। सोनी उस वक्त सोने के जवले घड़ रहा था परन्तु भक्ति भाव से मुनि को वोहराने के लिये उठकर अन्दर जाकर भिक्षा ले आया परन्तु उस समय अपने सोने के जवलो को वहां न
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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