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राजशेखर सूरि :आप मलधारगच्छीय नरेन्द्रप्रभसूरि के पट्टधर पद्मतिलकसूरि के प्रशिष्य तथा श्रातिलकसरि के शिष्य थे। न्यायकंदलीपंजिका (वि.सं. १३८५/ई. सन् १३२९), प्राकृतद्वयाश्रयवृत्ति (वि.सं. १३८६/ई. सन् १३३०) तथा प्रबन्धकोश अपरनाम चतुर्विशंतिप्रबन्ध (वि.सं. १४०५/ई. सन् १३४९) इनकी प्रमुख कृतियां हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने स्याद्वादकलिका, रत्नकरावतारिकापंजिका, कौतुककथा और नेमिनाथफागु की भी रचना की।३९ वि.सं. १३८६ से वि.सं. १४१५ तक इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ उपलब्ध जिन प्रतिमाओं का पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है।
इनके शिष्य सुधाकलश द्वारा रचित दो कृतियां मिलती हैं, इनमें प्रथम है संगीतोपनिषत्सारोद्धार जो वि.सं. १४०६/ईस्वी सन् १३५० में रचा गया है । इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थकार द्वारा वि.सं. १३८०/ई. सन् १३२४ में लिखी गयी संगीतोपनिषत् का संक्षिप्त रूप है । ५० गाथाओं में रचित एकाक्षरनाममाला इनकी दूसरी उपलब्ध कृति है।
सन्दर्भ
1. Muni Punya Vijaya - Catalogue or Palm-Leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay Vol. I, G.O.S. No. 135, Baroda 1961 A.D. pp. 66-67 2. P Petarson - Search of Sanskrit Mss Vol. V. Bombay- 1896 A.D. pp. 88-89 C.D Dalal - A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandars at Pattan Vol. I. G.O.S. No. LXXVI, Baroda- 1937 A.D. pp. 311-313 २. मुनिसुव्रतस्वामिचरित संपा. प. श्री रूपेन्द्र कुमार पगारिया, लालभाई दलपत भाई ग्रन्थांक १०६, अहमदाबाद, १९८९ ईस्वी, पृ. ३३७-३४१. ४. सुपासनाहचरिय संपा. पं. हरगोविन्ददाय, जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला, ग्रन्थांक १२, बनारस, १५१८ ई, प्रशस्ति. 5. Muni Punya Vijaya - Catalogue or Palm-Leaf Mss in the Shanti Natha Jain Bhandar, Cambay Vol || G.O.S. No. 149, Baroda 1966 A.D. pp. 243-244 6. Ibid, pp. 374-376. Muni Punya Vijaya - New Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss १८०
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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