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हमारी भारतीय संस्कृति त्यागमूलक रही है। सर्व संग परित्याग करके जो त्याग के सर्वोच्च शिखर पर आसीन होते हैं वे ही व्यक्तित्व भारतीय धर्म और संस्कृति के आदर्श हैं।
संत पुरुष इस आदर्श व्यक्तित्व के श्रेष्ठ उदाहरण हैं । अत: हमारी संस्कृति ने इन त्यागी-साधक संत मुनियों को सबसे अधिक आदरणीय, वंदनीय और पूजनीय माना है। हम ताजमहल को देखकर आश्चर्यमुग्ध जरूर होते हैं, परंतु वहां हमारा मस्तक नहीं झुकता । हमारा मस्तक झुकता है एक टूटी-फूटी साधना कुटिया पर जहां किसी त्यागी संत ने समाधि ली होती
की
संत-मुनियों के जीवन चरित्रों से हम त्याग का पाठ सीखते हैं। उनके प्रेरक उपदेश और विचार हमारे जीवन की उन्नति के मूल स्रोत होते हैं । वे अपने जीवन
और कार्यों द्वारा मानव समुदाय को नई दिशा और मार्ग | दे जाते हैं ।उनके अनंत उपकारों के प्रति हम सदा उनके ऋणी और कृतज्ञ रहते हैं।
संसार में वे ही धर्म, संस्कृति, समाज और संप्रदाय जीवित हैं,जो अपने पूर्वजों के उपदेशों और उनके प्रेरक चरित्रों का अनुशरण करते आए हैं। जिन्होंने अपने पूर्वजों की उपेक्षा की उन धर्मों और संस्कृतियों का आज इस संसार में कोई अस्तित्व नहीं है। उनके नाम-ओ-निशान मिट चुके हैं ।जैन धर्म आज भी उसकी मूल विभावना के साथ जीवित है इसका मूल कारण है
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