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अंकमाला - गणित का ज्ञान दिया । सामान्यत: पांचवें वर्ष से प्रारंभ करके वर्णमाला, अंकमाला तथा तत्पश्चात गणित का ज्ञान कराने में तीन वर्ष का समय लग जाता है। इस प्रकार आठ वर्ष का बालक शिक्षा के योग्य हो जाता है। भगवती सूत्र, ज्ञाता तथा अन्तकृद्दशासूत्र आदि के प्रसंगों से यह स्पष्ट होता है कि आठ वर्ष की आयुपूर्ण करने पर माता-पिता बालक को कलाचार्य के पास ले जाते थे और उन्हें सभी प्रकार की कलाएं, विद्याएं गुरूकुल में रखकर ही सिखाई जाती थी । महाबल कुमार, मेघकुमार, अनीयस कुमार आदि के प्रसंग उक्त सन्दर्भ में पठनीय हैं |२ बालक वर्धमान को भी आठ वर्ष पूर्ण करने पर कलाचार्य के पास विद्याध्ययन हेतु ले जाने का उल्लेख है । ३ निशीथचूर्णि के अनुसार आठवें वर्ष में बालक शिक्षा के योग्य हो जाता है 1 तत्पश्चात् नवम-दशम वर्ष में वह दीक्षा - प्रव्रज्या के योग्य भी बन जाता है ।४ जैन इतिहास के अनुसार आर्य शम्यंभव के पुत्र - शिष्य मनक ने आठ वर्ष की अवस्था में दीक्षित होकर श्रुतज्ञान की शिक्षा प्राप्त की । ५ इसी प्रकार आर्य सिंहगिरा ने बालक वज्र को आठ वर्ष की आयु में अपनी निश्रा में लेकर विद्याध्ययन प्रारंभ कराया जो एक दिन महान वागश्री और श्रुतधर बने ।६ इस प्रकार जैन आचार्यों के अनुसार शिक्षा प्रारंभ का सबसे अच्छा और अनुकूल समय आठवां वर्ष माना गया है । उ वर्ष का बालक शिक्षा योग्य बन जाता है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार भगवान महात्मा बुद्ध को भा पाठ वर्ष की उम्र में आचार्य विश्वामित्र के पास प्रारंभिक शिक्षा के लिए भेजा गया था।
शिक्षा की योग्यता
शिक्षा प्राप्त करने के लिए जब बालक गुरुकुलवास या गुरू के सान्निध्य में आता था तो सर्वप्रथम गुरू बालक की योग्यता तथा पात्रता की परीक्षा लेते थे । ज्ञान या शिक्षा एक अमृत के समान है, उसे धारण करने के लिए योग्य पात्र का होना बहुत ही आवश्यक है
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१. आदि पुराण (महापुराण, १६/१०० तथा त्रिषष्टि - १/२ एवं आवश्यकचूर्णि २. कुमार सातिरेंगं अट्ठवास जयं
१/१. अन्तकृद्दशासूत्र - ३/१
३. गुणचन्द्र का महावीर चरित्रं तथा त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरितं देखें ।
४. पढम दसाए- अट्ठ वरिसोवरि, नवम-दसमेसु दीक्खा निशीथचूर्णि उदशक ११
५. परिशिष्ट पर्व, सर्ग ५
६. परिशिष्ट पर्व, सर्ग ९२
७. ललित विस्तर पृष्ठ १४३
१४४
पयरो कलायरियस्स उवणेति भगवती पत्र ११ / ११, ज्ञातासूत्र
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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