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में हो चुका है (धम्मोपुबुद्दिवो)।२६ दशवैकालिकनियुक्ति में दशवैकालिकसूत्र की प्रथम गाथा का विवेचन करते समय धर्म शब्द के निक्षेपों का विवेचन हुआ है। इसे यह सिद्ध होता है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति, दशवैकालिकनियुक्ति के बाद निर्मित हुई है। इसी प्रकार सूत्रकृतांगनियुक्ति की गाथा १२७ में कहा है 'गंथोपुवुद्दिट्ठो'।२८ हम देखते हैं कि उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा २६७-२६८ में ग्रन्थ शब्द के निक्षेपों का भी कथन हुआ है। इससे सूत्रकृतांगनियुक्ति भी दशवैकालिकनियुक्ति एवं उत्तराध्ययननियुक्ति से परवर्ती ही सिद्ध होती है।
४. उपर्युक्त पांच नियुक्तियों के यथाक्रम से निर्मित होने के पश्चात् ही तीन छेद सूत्रों यथा-दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प एवं व्यवहार पर नियुक्तियां भी उनके उल्लेख क्रम से ही लिखीं गयीं है, क्योंकि दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति के प्रारम्भ में ही प्राचीनगोत्रीय सकल श्रुत के ज्ञाता और दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प एवं व्यवहार के रचयिता भद्रबाहु को नमस्कार किया गया है । इसमें भी इन तीनों ग्रन्थों का उल्लेख उसी क्रम से है जिस क्रम से नियुक्ति- लेखन की प्रतिज्ञा में है ।२० अत: यह कहा जा सकता है कि इन तीनों ग्रन्थों की नियुक्तियां इसी क्रम में लिखी गयी होंगी। उपर्युक्त आठ नियुक्तियों की रचना के पश्चात् ही सूर्यप्रज्ञप्ति एवं इसिभासियाइं की नियुक्ति की रचना होनी थी। इन दोनों ग्रन्थों पर नियुक्तियां लिखी भी गयीं या नहीं, आज यह निर्णय करना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि पूर्वोक्त प्रतिज्ञा गाथा के अतिरिक्त हमें इन नियुक्तियों के सन्दर्भ में कहीं भी कोई भी सूचना नहीं मिलती है। अत: इन नियुक्तियों की रचना होना संदिग्ध ही है। या तो इन नियुक्तियों के लेखन का क्रम आने से पूर्व ही नियुक्तिकार का स्वर्गवास हो चुका होगा या फिर इन दोनों ग्रन्थों में कुछ विवादित प्रसंगों का उल्लेख होने से नियुक्तिकार ने इनकी रचना करने का निर्णय ही स्थगित कर दिया होगा।
अत: सम्भावना यही है कि ये दोनो नियुक्तियां लिखी ही नहीं गई, चाहे इनके नहीं लिखे जाने के कारण कुछ भी रहे हों। प्रतिज्ञागाथा के अतिरिक्त सूत्रकृतांगनियुक्ति गाथा १८९ में ऋषिभाषित का नाम अवश्य आया है।३१ वहा यह कहा गया है कि जिस-जिस सिद्धान्त या मत में जिस किसी अर्थ का निश्चय करना होता है उसमें पूर्व कहा गया अर्थ ही मान्य होता है, जैसे कि-ऋषिभाषित में । किन्तु यह उल्लेख ऋषिभाषित मूल ग्रन्थ के सम्बन्ध में ही सूचना देता है न कि उसकी नियुक्ति के सम्बन्ध में ।
नियुक्ति के लेखक और रचना-काल : नियुक्तियों के लेखक कौन हैं और उनका रचना काल क्या है ये दोनों प्रश्न एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं ! अत: हम उन पर अलग-अलग विचार न करके एक साथ ही विचार करेंगे। ९६
श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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