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नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन
- प्रो. सागरमल जैन जिस प्रकार वेदों के शब्दों की व्याख्या के रूप में सर्वप्रथम निरुक्त लिखे गये, सम्भवत: उसी प्रकार जैन परम्परा में आगमों की व्याख्या के लिए सर्वप्रथम नियुक्तियां लिखने का कार्य हुआ। जैन आगमों की व्याख्या के रूप में लिखे गये ग्रन्थों में नियुक्तियां प्राचीनतम हैं।
आगमिक व्याख्या साहित्य मुख्य रूप से निम्न पांच रूप में विभक्त किया जा सकता है- १. नियुक्ति २. भाष्य ३. चूर्णि ४. संस्कृत वृत्तियां एवं टीकाएं और ५. टब्बा अर्थात् आगमिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए प्राचीन मरु-गुर्जर में लिखा गया आगमों का शब्दार्थ । इनके अतिरिक्त सम्प्रति आधुनिक भाषाओं यथा हिन्दी, गुजराती एवं अंग्रेजी में भी आगमों पर व्याख्याएं लिखी जा रही हैं।
सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान शारपेन्टियर उत्तराध्ययन सूत्र की भूमिका में नियुक्ति की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि “नियुक्तियां मुख्य रूप से केवल विषयसूची का काम करती है । वे सभी विस्तारयुक्त घटनाओं को संक्षेप में उल्लिखित करती हैं।”
अनुयोगद्वारसूत्र में नियुक्तियों के तीन विभाग किये गये हैं
१. निक्षेप-नियुक्ति—इसमें निक्षेपों के आधार पर पारिभाषक शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया जाता है।
२. उपोद्घात-नियुक्ति—इसमें आगम में वर्णित विषय का पूर्वभूमिका के रूप में स्पष्टीकरण किया जाता है।
नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन
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