________________
साधक के लिए तो घातक है ही, सामान्य जन से भी यह मानवत्व का अधिकार छीन लेता है । आचार्य हेमचन्द्र अभिधान- चिन्तामणि में लिखते हैं
“द्विजिह्वो मत्सरी खलः ।”
मत्सरी को द्विजिह्व भी कहा जाता है । द्विजिह्व सर्प का भी नाम है मात्सर्ययुक्त व्यक्ति एक प्रकार से सांप की ज्यों विषैला प्राणी है ।
मानवता का यह चौथा हेतु हमें प्रेरित करता है कि सभी स्थानों में हम गुणों पर ही ध्यान दें, किसी के दुर्गुण न देखें । किसी को बुरा बतलाने की चेष्टा न करें । इसी से हमें मनुष्य कहलाने का अधिकार प्राप्त हो सकता है, मानवता की सच्ची भूमिका का निर्माण हो सकता है ।
ये चारों ही कारण अपने आप में बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रभु महावीर के उपदेशानुसार यदि कोई इन्हें जीवन में उतार लेता है, वह सही अर्थ में मानव बन जाता है तथा भवान्तर में भी मानव बनने की भूमिका प्राप्त कर लेता है ।
Jain Education International
O
For Private & Personal Use Only
५९
www.jainelibrary.org