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कुलदीपक कोठियाजी
श्री दुलीचन्द्र जैन, बीना डॉ० दरबारीलाल कोठियाका जन्म विक्रम संवत १९६८ में आषाढ कृष्ण द्वितीयाके दिन नैनागिर (म० प्र०) में हुआ था। उनके पितामहका नाम मुकुन्दलाल था । वे सात्त्विक प्रकृतिके सीधे-साधे सद्गृहस्थ थे। उनकी सुन्दर हस्तलिपि आकर्षक थी। उनके द्वारा लिखी गई पूजा स्तुति आदिकी पोथियाँ सोरईके जिन-मन्दिरमें देखी गई हैं । उनके क्रमसे ये चार पुत्र हुए।
१. पहले पुत्रका नाम कारेलाल था। उनके हरप्रसाद नामका एक पुत्र हुआ। हरप्रसादकी उम्र लगभग ३-४ वर्ष की रही होगी कि थोड़े समयके अन्तरसे प्रथमतः माताका और तत्पश्चात् पिताका भी स्वर्गवास हो गया । वर्तमानमें वह पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्यके पास बीनामें हैं । अवस्था लगभग ६५ वर्ष की है।
२. दूसरे पुत्रका नाम हजारीलाल था। हजारीलालजी शरीरसे सुन्दर, स्वस्थ, धर्मानुरागी व शिक्षा प्रमी थे। व्यक्तित्व उनका आकर्षक था। उनके दरबारीलाल नामका एक ही पुत्र हआ। हजारीलालजीकी गणना तात्कालिक पण्डितोंमें की जाती थी। उनके धार्मिक संस्कार बालकके ऊपर पड़े । उन्होंने बेटेको बहुत लाड-प्यारसे रखा। वे जिनमन्दिरमें जब दर्शन-पूजनादिके लिये जाते तो बालकको साथ ले जाते । उनकी आन्तरिक भावना बालकको सुशिक्षित, धार्मिक व लोकप्रतिष्ठित आदर्श पुत्रके रूपमें देखनेकी रही। पर दैवको यह इष्ट नहीं था। बालककी उम्र लगभग ६ वर्ष की ही थी कि वे वि० संवत् १९७४ के कार्तिक मासमें कालके ग्रास बन गये । हृदयमें अंकुरित उनके वे सब मनोरथ हृदयमें ही रह गये । स्वर्गवासके समय उनकी अवस्था केवल ३२ वर्षकी थी। कुछ समयके पश्चात् बालक माताके प्यारसे भी वंचित हो गया।
ऐसी अनिर्वचनीय असहाय अवस्थामें बालकको स्नेहके वश उसके मामा सिंघई मोहनलालजी अपने घर सोरई (ललितपुर) ग्राममें ले गये । वहाँ उन्होंने उसे बड़े लाड-प्यारसे रखा और उसकी प्राथमिक शिक्षा वहींके प्राइमरी स्कूल में सम्पन्न कराई।
३. तीसरे पुत्रका नाम छतारेलाल था । वि० संवत् १९७५ के कार्तिक मासमें समस्त भारत को व्याप्त करने वाली एक भयंकर बीमारी फैली थी। इस संक्रामक बीमारीसे भारतका कोई भी नगर व ग्राम प्राय: अछता नहीं रहा था। इस बीमारीमें होनहार पुत्र छतारेलालका लगभग १६ वर्षकी अवस्थामें निधन हो गया था।
४. चौथे पुत्रका नाम वंशीधर है, जो उच्च कोटिका विद्वान्, व्याकरणाचार्य, वर्तमानमें बीनामें प्रतिष्ठित है । इनकी उम्न १३ वर्षकी थी, जब उनकी माता राधादेवीका भी स्वर्गवास उसी बीमारीमें हो गया था, जिसमें कुछ ही दिन पूर्व उनके पुत्र छतारेलालका स्वर्गवास हुआ था। शिक्षा
यह पहले कहा जा चुका है कि धर्मपर आस्था रखने वाले स्वर्गीय पिताके द्वारा आरोपित धार्मिक संस्कार बालकके हृदय पर अंकुरित होने लगे थे। तदनुसार बालकने प्राथमिक शिक्षाको सोरईमें समाप्त कर
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