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उनका आदर्श मेरा प्रेणास्रोत • डॉ० रमेशचन्द जैन, विजनौर
वर्ष १९६२ ई० के मई मासकी बात है । मेरे परमपूज्य बाबाजीको मेरी मैट्रिक तथा पूर्वमध्यमाकी पढ़ाई सम्पन्न हो जानेपर इसकी चिन्ता थी कि वे मुझे आगे पढ़ने के लिए कहाँ भेजें। इसी बीच आदरणीय कोठियाजीका मडावरा आगमन हआ। पंडितजी सोंरई जा रहे थे। बातचीतके मध्य उन्होंने भेरी बनारस जानेकी इच्छाका पूर्ण समर्थन किया और मेरे पितामहको पूरी तरहसे आश्वस्त कर दिया कि वे हर प्रकारका मार्गदर्शन मुझे देते रहेंगे। पूज्य पितामहजी उनके सौहार्दपूर्ण वचनोंके कारण मुझे बनारस भेजने के लिए तैयार हो गए। पूज्य पंडितजीने स्याद्वाद महाविद्यालयके गृहपति श्रीमान् पं० पद्मचन्द्र शास्त्रीको एक पत्र भी लिख दिया । बनारससे प्रवेश फार्म आ गया । मुझे बनारस बुला लिया गया ।
बनारसमें स्याद्वाद महाविद्यालयमें रहते हुए प्रायः मेरा पंडितजीके यहाँ जाना होता और पंडितजीका स्नेहपूर्ण संलाप होता एव पंडितजीकी धर्मपत्नीजीसे मातृवत स्नेह मिलता।
आदरणीय पंडित कोठियाजी मानवोचित गुणोंसे सम्पन्न हैं। उदारता उनका विशेष गण है।
उनका आदर्श निरन्तर मेरा प्रेरणास्रोत रहा है। उनके अभिनन्दनके अवसरपर मैं उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता हुआ उनके चिरायुष्यकी मंगल-कामना करता हूँ। विद्वद् विभूति •पं० बालचन्द्र शास्त्री काव्यतीर्थ, नवापारा-राजिम
जैन-समाजमें जो प्रकांड विद्वान् हैं, उनमें डॉ० दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्यका प्रमुख स्थान है । आप जैन जगतके प्रकाशस्तम्भ हैं, और बुन्देलखण्डकी विभूति हैं तथा समन जैन समाजके देदीप्यमान नक्षत्र है।
आपने जो समाजकी सेवाएँ की है वे किसीसे छिपी नहीं हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालयमें प्रवक्ता एवं रीडरके पदपर रहकर जैन, अजैन छात्रों तथा अन्य लोगोंको जैनधर्म और जैनदर्शनके प्रति आकर्षित कर वहाँ उनका आश्चर्यजनक प्रभाव अंकित किया है ।
शिवपुरीमें हुए विद्वत्परिषदके अधिवेशनके अध्यक्ष पदसे आपने जो महत्त्वपूर्ण भाषण दिया था, वह आज भी मेरे मनपर प्रभाव किये हुए है। उसमें आपने विद्वानोंकी आर्थिक चिन्ता व्यक्त करके समाजसे अनुरोध किया था कि उन्हें समाजमें बराबर सम्मान मिले, और समाजसेवाके उपलक्ष्यमें आर्थिक कठिनाई न होने पावे। कम-से-कम प्रत्येक विद्वान्को ५०० रुपया वेतन मिलना ही चाहिये। विद्वानों की आर्थिक स्थितिके सुधारके लिए मैंने यह सर्वप्रथम आवाज सुनी थी। इस आवाजसे उन्होंने समाजको प्रेरित किया । समाजके विकास और जागरणके लिए डॉ० कोठियाजीकी चिन्ताको अनेक बार देखा । वे यत्र तत्र सर्वत्र समाजके प्रत्येक क्षेत्र में पहुँचकर अपने प्रभावी भाषणों द्वारा समाजको प्रोत्साहित करते हैं। निर्धन वर्गको ऊँचा उठाने के लिए वात्सल्यकी आवश्यकतापर भी बल देते हैं।
समाज तथा विद्वानोंकी चिन्ता करनेवाले ऐसे सारस्वतके प्रति हम जितना भी सम्मान प्रकट करें, थोड़ा है। उनके इस अभिनन्दनके अवसरपर मैं उनके दीर्घ जीवन की कामना करता हुआ श्री वोरप्रभुसे प्रार्थना करता हूँ कि डॉ० कोठियाजी समाज और साहित्यकी चिरकाल तक सेवा करते हए यशस्वी जीवन बितायें।
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