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सामाजिक, साहित्यिक और ज्ञानके क्षेत्रमें की गयी सेवाओंके उपलक्ष्यमें समाजने अपार उल्लासके साथ अभिनन्दन किया, जो अपने आपमें कई दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण था।
अभिनन्दनपत्रका समर्पण स्वागताध्यक्ष समाजरत्न श्री महेन्द्रकुमारजी मलैया, सागरने किया। अनेक सामाजिक, शैक्षणिक, सार्वजनिक संस्थाओं एवं समाजके प्रमुख व्यक्तियों द्वारा माल्यार्पण किये जानेके समय डा० कोठियाजी मालाओंसे भरे हुए दिखते थे । तथा अत्यन्त विनम्रतासे उनका मस्तक नम्र था । अपने अभिनन्दनके प्रत्युत्तरमें डा० कोठियाजीके शब्द देखिये- आपके द्वारा किये गये इस स्नेहपूर्ण अभिनन्दनके बोझसे मैं अपने आपको अत्यन्त बोझिल अनुभव कर रहा हूँ।'
'मैं किन शब्दोंमें आपका आभार स्वीकार करूं। मैं श्री जिनेन्द्रसे प्रार्थना करता हैं कि मैं आपकी शुभ-कामनाओं के अनुरूप जिनवाणी और समाजकी सेवामें संलग्न रहूँ ।'
उस समयका वातावरण हर्षोल्लासपूर्ण था। १ मार्च ७७ को आयोजित विद्यालयका स्वर्ण-जयन्ती-समारोह
विशाल जैन समुदाय के बीच अध्यक्षता करते हुए डा० कोठियाजीने शिक्षाके महत्त्व एवं पूज्य वर्णीजी महाराजके स्तुत्य योगदानका उल्लेख किया तथा श्री गुरुदत्त दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालयके सफल ५० वर्ष पूर्ण होनेपर प्रसन्नता व्यक्त की और इसके अभ्युत्थान एवं उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए कामना करते हये महाविद्यालयका रूप दिये जानेका विचार समाजके समक्ष रखा । आर्थिक सहयोगको अपील करते हुए जहाँ अपनी ओरसे ११००) राशिकी घोषणा की, वहाँ कुछ ही क्षणोंमें ५० हजारका चन्दा इकट्ठा हो गया। सरस्वती और लक्ष्मीको, जिनका आपसमें विरोध माना जाता है, एक साथ यदि देखना हो तो डा० कोठियाजीमें देख सकते हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह सब होते हुये भी अभिमान नहीं है, प्रत्युत उदारताका विशाल हृदय है और दान देनेके लिये विशेषकर छात्रोंके लिये एवं विद्या-मन्दिरोंके लिये तो हमेशा ही आपका हाथ खुला रहता है ।
निश्चित ही डा० कोठियाजी जैसे विद्वान्पर समाजको गर्व है। जैसा मैंने उन्हें जाना और पाया • आचार्य अनन्तप्रसाद, 'लोकपाल', गोरखपुर
डा० कोठिया जैन जगतके जाने-माने श्रेष्ठ विद्वान् है। मेरे मित्र तो हैं ही । पावानगर निर्वाणक्षेत्रसमितिके अध्यक्ष श्री राय देवेन्द्र प्रसादजीके आमंत्रण एवं अनुरोधपर डा० कोठियाजी यहाँ आए । बड़ी ही घनिष्ठता, सौहार्द एवं स्नेहके साथ हमलोग आपसमें एक दूसरेका अंक भरकर मिले । तबसे हर वर्ष कोठियाजी गोरखपुर आते है और हमलोगोंके साथ "पावा" जाते हैं । वहाँ अपने विद्वत्तापूर्ण भाषण एवं संभाषणसे सबका ज्ञान-वर्धन करते हैं।
कोठियाजी जैन समाजके विश्रत एवं श्रेष्ठ विद्वान हैं। आप स्नेही, मदुल स्वभाव वाले मिलनसार, सात्विक व्यक्ति हैं । इनके जैसा कर्त्तव्यनिष्ठ, सरल, निर्लोभ और बातके धनी विद्वान् समाजमें बहुत ही कम हैं। इन्होंने पावानगर में निर्माणके लिए एक हजार रुपयोंका दान भी दिया है तथा वाराणसीमें गरीब विद्यार्थियोंको आर्थिक सहायता देते रहते हैं । जैन विद्वानों और पंडितोंमें यह दानकी प्रवृत्ति महान गुण हैं । समाजके सभी पंडित और विद्वान यदि इस आदर्शका अनुकरण करें तो समाज और देशका महान भला हो ।
मेरी हार्दिक कामना है कि कोठियाजी पूर्ण आयु पर्यन्त पूर्ण स्वस्थ, निश्चिन्त, संतुष्ट एवं सुखी रहें तथा उनका ज्ञान शुद्ध सम्यकुज्ञान और शुद्ध आत्मज्ञान होकर उन्हें मोक्षमार्गमें आगे-आगे बढ़ता हआ अंततः निर्वाण-प्राप्ति करावे । ॐ शान्तिः ।
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