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कर्तृत्व एवं व्यक्तित्वके धनी •पं० कमलकुमार शास्त्री, टीकमगढ़
सन् ३७-३८की बात है, जब श्रद्धय कोठियाजी बुन्देलखण्डके प्रसिद्ध तीर्थ श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र पपौराजीमें अध्यापक थे। पपौराजीका वातावरण उस समय आजसे भी अधिक आकर्षक था। चारों ओर सघन वन बीचोंबीच २ मीलके विस्तत पर कोटेके अन्दरआकाशको चूम लेनेकी होड़सी लगाये हए गगन चुम्बी शिखरोंसे युक्त विशाल विविध शैलीके ७५ जिन मन्दिर अपने में प्राचीन इतिहासको छपाए हुए अडिग हजारों वर्षोंसे अवस्थित है । उस समय पपौरा तीर्थ बहुत बड़ा तीर्थ था। बुन्देल खण्डके लोगोंके लिए अन्य तीर्थ या तो प्रकाशमें नहीं आए थे या उन तक पहुँचनेके लिए कोई सीधा मार्ग नहीं था। पपौरा टीकमगढ़ राजधानीके संनिकट था । अतः तत्कालीन महाराज की देखरेख रहती थी और भारत वर्षमें २-३ जगह ही जैन विद्यालय थे। उनमें पपौराजीका विद्यालय भी एक था। ५०-६० छात्र उच्च कक्षाओं
यन करते थे। टीकमगड़ जिले के हटा ग्राम विमानोत्सव था। उसमें श्रद्धय पं० दरबारीलालजी कोठिया पपौरासे पधारे थे। लोगोंको उत्सुकता थी, आपके प्रवचन भाषण सुनने के लिए । मैं छोटा था। इतना समझदार भी नहीं था कि पंडितजीके प्रवचनको समझ लेता, लेकिन न मालूम पंडितजीके व्यक्तित्वका क्या प्रभाव था, सारी जनता मंत्र मुग्ध हो प्रवचन सुन रही थी. मैं सबसे आगे बैठा शान्तभावसे सुन रहा था । उस दिनका प्रभाव आज भी ज्यों-का-त्यों बना है। फिर कई बार मुलाकात हुई साथ भी रहे । आपका सरल स्वभाव व मधुर वाणी सहज ही अपनी ओर खींच लेती है।
आप चाहे छोटा विद्वान् हों, चाहे बड़ा विद्वान् हो, चाहे कोई छात्र हो सबको समान आदरभाव देते हैं । न्यायाचार्य एवं जैन दर्शन के विशिष्ट मर्मज्ञ होते हुए भी कितनी निरभिमानता है, यह कोई भी व्यक्ति आपको देख कर कह देगा।
आजके इस वैज्ञानिक युगमें उत्पन्न हए नवयुवक जो तर्क और वितर्ककी कसौटीपर हर जैन सिद्धान्तको कसकर परखना चाहते हैं एवं अपनी असैद्धान्तिक तर्कहीन दृष्टियोंसे अपना मत प्रतिष्ठित करना चाहते हैं । उनके बीच अपना व्यक्तित्व बनाये रखने में कोठियाजो सिद्धहल्त हुए हैं । यह एक उनकी महान उपलब्धि है।
आपकी कर्तत्वशक्तिका परिचय तो तब मिला, जब आपने जिन संस्थाओंको हाथमें लिया उन्हें उन्नत बनाने में प्राणपणसे प्रयत्न किया है।
इस अवसर पर उनके दीर्घ जीवनके लिए मंगल-कामना करता हूँ। जीवेत शरद : शतम् .श्री स्वरूप चन्द्र जैन, जबलपुर
जैन न्यायके प्रकांड विद्वान् श्री न्यायाचार्य डा० दरबारीलालजी कोठियासे समाजका प्रबुद्धवर्ग सुपरिचित है। उन्होंने ४५ वर्षों तक समाजकी विभिन्न शिक्षण-संस्थाओंको अपनी सेवायें प्रदान की हैं।
श्री कोठियाने जैन न्याय विषयपर जिन महत्वपूर्ण ग्रन्थोंकी रचना की है, वे सभी ग्रन्थ मौलिक, प्रामाणिक और संग्रहणीय हैं।
आज आगमके सिद्धान्तोंको भी वैज्ञानिक आधारपर आधुनिक शैलीपर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। समाजशिरोमणि श्रीवर्ग चाहें, तो कोठियाजी आदि प्रकांड विद्वानोंके अनुभवोंसे देश-समाजको लाभान्वित कराने के लिए विस्तृत योजना बना सकते हैं ।
मेरी कामना है, कोठियाजी शतायु होकर देश-साहित्य-धर्म-समाजको लाभान्वित कराते रहें।
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