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हमारे सांस्कृतिक गौरवका प्रतीक : अहार क्षेत्रकी पावनता और अतीत गौरव
आजसे एक हजार वर्ष पूर्व यह वन-खण्ड (क्षेत्र) कितना समृद्ध था, कितनी जातियाँ यहाँ रहती थीं, कितने धनकुबेरोंकी यहाँ गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ थीं और कितने धर्मपिपासु साधक और श्रावकजन यहाँ द्रव्यका व्यय कराकर और करके अपनेको धन्य मानते थे। आप क्या कह सकते हैं कि यह सब समद्धिविभिन्न अनेक जातियोंका निवास, अनगिनत जिनमन्दिरोंका निर्माण और उनकी तथा असंख्य मूर्तियोंकी प्रतिष्ठाएं जादूकी छड़ीकी तरह एक दिन में होगई होंगी ? मेरा विश्वास है कि इस अद्भुत समृद्धिके लिए, दस-बीस वर्ष ही नहीं, शताब्दियां लगी होंगी । यहाँकी चप्पे-चप्पे भूमिके गर्भ में सहस्रों मूर्तियों, मन्दिरों और अट्टालिकाओंके भग्नावशेष भरे पड़े हैं। क्षेत्रकी भूमि तथा उसके आस-पासके स्थानोंकी खुदाईसे जो अभी तक खण्डित-अखण्डि मूर्तियाँ और महत्त्वपूर्ण भग्नावशेष उपलब्ध हुए हैं, वे तथा उनपर अङ्कित प्रचुर लेख यहाँके वैभव और गौरवपूर्ण इतिहासकी परम्पराको प्रकट करते हैं । सत्तरह-अठारह वर्ष पहले पं० गोविन्ददासजी न्यायतीर्थने, जो यहीं के निवासी है, बड़े श्रमसे यहाँके ११७ मूर्तिलेखों व अन्य लेखोंका संग्रह करके उन्हें अनेकान्त (वर्ष ९, १०, सन् १९४८-४९) में प्रकाशित किया था। बा० यशपालजी जैन दिल्लीके प्रयाससे एक संग्रहालयकी भी यहाँ स्थापना हो गई है, जिसमें कितनी ही मूर्तियों के अवशेष संगृहीत हैं । बरिषभचन्द्रजी जेन प्रतापगढ़ने भी इस क्षेत्रकी कुछ ज्ञातव्य सामग्रीपर प्रकाश डाला है। स्व० क्षेत्र-मंत्री पं०
का तो आरम्भसे ही इस दिशामें स्तुत्य प्रयास रहा है। आपने पं० धर्मदासजी द्वारा रचित हिन्दीके 'चौबीसकामदेव-पुराण' के, जिसे लेखकने श्रीनामक आचार्यके 'प्राकृत चौबीस कामदेव पुराण' का अनुवाद बताया है, आधारसे उसमें वर्णित यहाँके स्थानोंकी पुष्टि उपलब्ध वर्तमान स्थलोंसे करते हुए कुछ निष्कर्ष ऐसे निकाले हैं जो विचारणीय हैं । उदाहरणके लिए उनके कुछ निष्कर्ष इस प्रकार हैं :
१. कोटौ नामक भाटो वर्तमान क्षेत्रसे अत्यन्त निकट है, जो एक फलांग ही है । इस भाटेमें गगनचम्बी पर्वत हैं, जिनपर मन्दिरोंके भग्नावशेष अब भी पाये जाते हैं।
२. मदनसागर तालाब, काममदनसागर और मदनेशसागर ये तीनों तालाब पर्वतोंके नीचे तलहटीमें हैं।
३. हथनूपुर (हन्तिपुर) नामक स्थान पहाड़के नीचे हाथीपडावके नामसे प्रसिद्ध है ।
४ सिद्धान्तश्री सागरसेन, आर्यिका जयश्री और चेल्लिका रत्नश्रीके नाम यहाँके मूतिलेखोंमें अङ्कित हैं।
५. गगनपर नामक स्थान आज गोलपुरके नामसे प्रसिद्ध है, जो क्षेत्रके समीप ही है। ६. टांडेकी टोरिया, टांडेका खंदा और पड़ाव ये तीनों स्थान क्षेत्रके अत्यन्त निकट हैं। ७. सिद्धोंकी गुफा, सिद्धोंकी टोरिया नामक स्थान भी पासमें ही हैं।
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