________________
महान व्यक्तित्वके धनी .पं० राजकुमार शास्त्री, आयुर्वेदाचार्य, निवाई
कवियोंने ठीक ही कहा है-"होनहार विरवानके, होत चीकने पात ।" कुछ व्यक्ति जन्मसे ही प्रतिभावान होते हैं। समयके साथ उनकी प्रतिभा विकसित होती जाती है और इसीसे वे ऐसे कार्य अपने जीवनमें कर जाते हैं, जो दूसरोंको अनुकरणीय बन जाते हैं। हमारे ग्रन्थ-नायक श्री कोठियाजी इसी तरहके महान व्यक्तित्वके धनी हैं। आपके चेहरेपर प्रकांड पण्डित्य एवं सहज सौम्वत्व झलकता है। आप जैन न्याय विषयके पूर्ण अधिकारी विद्वान है। आपके द्वारा लिखे गये ग्रन्थोंका जिन्होंने अध्ययन किया है वे उनके अकाट्य तर्कपूर्ण गवेशणाओंके प्रशंसक हुए विना नहीं रह सकते हैं। ये सब उनके गम्भीर अध्ययन व गंभीर चिंतनके प्रतिफल है। आज वे अपनी विद्वत्ताके बल पर ही भारतीय स्तरके विद्वानोंमें अपना नाम रोशन किये हए हैं। नैनागिरि जैसे छोटे क्षेत्रमें जन्मा व्यक्ति आज सारे भारतमें सम्मानित है। यह सब निरंतर सरस्वती माताकी साधनाका फल श्री कोठियाजीको मिला है। समाजके विभिन्न क्षेत्रोंमें आपने जिस निस्वार्थ भावना एवं सच्ची लगनसे कार्य किया है वह उपकार समाज कभी भूल नहीं सकती है। आज आपका भारतीय स्तर पर जो अभिनंदन हो रहा है। और अभिनंदन-ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। यह सब उसी सेवाका प्रतिफल है। हम भी अपनी ओरसे तथा अखिल विश्व जैन मिशन परिवारकी ओरसे आपका अभिनंदन करते हुए आपकी चिरायु होनेकी कामना करते हैं । सादगी और सरलताकी मूर्ति • डॉ० बालचन्द्र जैन, जबलपुर
मैं पण्डितजीको लगभग ३० वर्षोंसे जानता हूँ। वे मुझसे बहुत ज्येष्ठ हैं किन्तु मैंने पाया कि वे अपने कनिष्ठोंके प्रति अत्यन्त स्नेहशील हैं। वे बहुमानके साथ शिक्षा देते हैं। मुझे आदरणीय पण्डितजीके साथ लगातार कई महीनों तक दिल्लीमें रहनेका अवसर मिला । उनका वात्सल्य मुझे मिला। वे डाक्टर हो गये, प्रोफेसर हो गये, किन्तु जितना अधिक आदर उन्हें पण्डितजी कहकर प्रदर्शित किया जाता है, उतना उन्हें न्यायाचार्य, डाक्टर अथवा प्रोफेसर कहने में नहीं। उनका पाण्डित्य गंभीर है। वे वास्तवमें पण्डितजी हैं । उनके दीर्घजीवी होनेकी कामनाएँ हैं ।
प्रेरणास्रोत • डॉ. लालचन्द जैन, वैशाली
जैन न्याय-दर्शनके लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् डा० दरबारीलालजी कोठिया समाजके मूर्धन्य, निश्छल और निःस्वार्थसेवी विद्वान के रूपमें प्रसिद्ध हैं। उनका जीवन प्रेरणाका स्रोत और वात्सल्यसे आप्लावित है। किसीको दुःखसे आक्रान्त देखकर उनका सरल चित्त दयासे द्रवीभूत हो जाता है। चाहे वह उनका शिष्य हो या कोई अन्य। उसे सदैव प्रोत्साहित करते हैं। यदि कोई निराश होता तो उसे अपने जीवनको घटनायें सुनाकर कठिन-से-कठिन बाधाओंसे जूझने और अपना रास्ता स्वयं निष्कंटक बनाने का प्रोत्साहन देना पूज्य पं० कोठियाजीका स्वाभाविक गुण है। यदि कोई छात्र साधनहीन होता तो पंडितजी अपने पाससे तत्काल उसकी समस्या हल कर देते है, और भविष्यके लिए उसे किसी-न-किसी स्रोतसे आर्थिक सहयोग दिलाकर निश्चित कर देना पंडित कोठियाजी अपना कर्तव्य समझते हैं ।
इस सन्दर्भमें मैं आजसे लगभग २१ वर्ष पहले की घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ। मैंने पण्डितजीके सर्व प्रथम दर्शन उस समय किये थे, जब सन् १९६१ मे मैं स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसीका पूर्व मध्यमा
-१३ -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org