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११. पदोंकी पुस्तक [मौलिक]
(२४६ पदोंका संग्रह) आषाढ शु० १० सं० १८७४ १२. सामायिकपाठ-बच निका १३. पत्रपरीक्षा-वचनिका १४. चन्द्रप्रभचरित-द्वितीयसर्ग-वचनिका १५. मतसमुच्चय-वच निका १६. धन्यकुमारचरित-वचनिका इन रचनाओंका परिचय उनके ही नामसे विदित हो जाता है । अतः वह छोड़ा जाता है ।
उपर्युक्त विवेचनसे प्रकट होता है कि पण्डित जयचन्दजी छावड़ा विशिष्ट शास्त्राभ्यासी, बहुज्ञानी, संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी भाषाओंके ज्ञाता, हिन्दीगद्य-पद्यसाहित्यकार, प्रवक्ता, चारित्रवान, भद्रपरिणामी और आध्यात्मिक विद्वान् थे । वे जैनदर्शनके साथ ही अन्य भारतीय दर्शनोंके भी मर्मज्ञ थे। उनकी शासन-सेवा एवं साहित्यिक कृतियाँ उन्हें चिरस्मरणीय रखेंगी।
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