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समाधिमरण कर्ता, कारयिता, अनुमोदक और दर्शकों की प्रशंसा :
शिवार्य ने इस सल्लेखना के करने, कराने, देखने, अनुमोदन करने, उसमें सहायक होने, आहार - औषधस्थानादि देने तथा आदर भक्ति प्रकट करनेवालोंको पुण्यशाली बतलाते हुए उनकी बड़ी प्रशंसा की है। वे लिखते हैं
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'वे मुनि धन्य हैं, जिन्होंने संघ के मध्य में जाकर समाधिमरण ग्रहण कर चार प्रकार ( दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप ) की आराधनारूपी पताकाको फहराया है ।'
'वे ही भाग्यशाली और ज्ञानी हैं तथा उन्होंने समस्त लाभ पाया है जिन्होंने दुर्लभ भगवती आराधना (सल्लेखना ) को प्राप्त किया है ।'
'जिस आराधनाको संसार में महाप्रभावशाली व्यक्ति भी प्राप्त नहीं कर पाते, उस आराधनाको जिन्होंने पूर्णरूप से प्राप्त किया, उनकी महिमाका वर्णन कौन कर सकता है ?'
'वे महानुभाव भी धन्य हैं, जो पूर्ण आदर और समस्त शक्ति के साथ क्षपककी आराधना कराते हैं ।'
'जो धर्मात्मा पुरुष क्षपककी आराधनामें उपदेश, आहार-पान, औषध व स्थानादिके दानद्वारा सहायक होते हैं, वे भी समस्त आराधनाओंको निर्विघ्न पूर्ण करके सिद्धपदको प्राप्त होते हैं ।'
१. ते सूरा भयवंता आइच्चइऊण संघ- मज्झम्मि ।
आराधणा-पडाया चउपयारा धिदा जेहि ॥ ते घण्णा ते णाणी लद्धो लाभो य तेहि सव्र्व्वेहि । आराधना भवदी पडिवण्णा जेहि संपुण्णा || किं णाम तेहि लोगे महाणुभावेहि हुज्ज ण य पत्तं । आराधना भवदी सयला आराधिदा जेहि ॥ तेचि महाणुभावा धण्णा जेहिं च तस्स खवयस्स । सव्वादर - सत्ती उवविहिदाराधणा सयला || जो उवविधेदि सव्वादरेण आराधणं खु अण्णस्स । सपज्जदि निव्विग्धा सयला आराधणा तस्स ॥
विदत्था घण्णा हुँति जे पावकम्म-मल-हरणे | यंत खवय-तित्थे सव्वादर भत्ति-संजुत्ता ॥ गिरि-नदियादिपदेसा तित्थाणि तवोधणेहि जदि उसिदा । तिथं कथं ण हुज्जो तवगुणरासी सयं खवओ ॥ पुव्व-रिसीणं पडिमा वंदमाणस्स होइ जदि पुण्णं । खवयस्य वंदओ किह पुण्णं विउलं ण पाविज्ज ||
जो अलग्गदि आराधयं सदा तिव्वभत्तिसंजुत्तो ।
संपज्जदि णिन्दिग्धा तस्स वि आराधणा सयला ॥ - भ० आ० गा० १९९७ - २००५ ।
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