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सर एंड क्लार्क कहते हैं कि - "संयमसे कोई नुकसान नहीं पहुँचता और न वह मनुष्य के स्वाभाविक विकासको रोकता है, वरन् वह तो बलको बढ़ाता है और तीव्र करता है । असंयमसे आत्मशासन जाता रहता है, आलस्य बढ़ता है और शरीर ऐसे रोगोंका शिकार बन जाता है जो पुश्त दरपुश्त असर करते चले जाते हैं ।”
महाशय गैंबरियल सोलेस कहते हैं कि - "हम बार-बार कहते फिरते हैं कि हमें स्वतन्त्रता चाहिये, हम स्वतन्त्र होंगे। परन्तु हम नहीं जानते कि स्वतन्त्रता कर्त्तव्यकी कैसी कठोर बेड़ी है । हमें यह नहीं मालूम कि हमारी इस नकली स्वतन्त्रताका अर्थ इन्द्रियोंकी गुलामी है जिससे हमें न तो कभी कष्टका अनुभव होता है और न हम कभी इसलिये उसका विरोध ही करते हैं ।"
ब्यूरोका यह वाक्य प्रत्येक मनुष्यको अपने हृदय पटल पर अंकित कर लेना चाहिये कि "भविष्य संयमी लोगोंके ही हाथोंमें है ।"
महात्मा गांधी जो इन्द्रियसंयमके जागरूक प्रहरी थे-- स्वयं क्या कहते हैं, सुनिये -
"संयत और धार्मिक जीवन में हो अभीष्ट संयमके पालनकी काफी शक्ति हैं । संयत जीवन बितानेमें ही ईश्वर-प्राप्तिकी उत्कट जीवन्त अभिलाषा मिली रहती है। मैं यह दावा करता हूँ कि यदि विचार और विवेक से काम लिया जाय तो विना ज्यादा कठिनाईके संयमका पालन सर्वथा सम्भव है । वह गाँधी, जो किसी जमाने में कामके अभिभूत था, आज अगर अपनी पत्नीके साथ भाई या मित्रके समान रहता है और संसारकी सर्व श्रेष्ठ सुन्दरियोंको भी बहिन या बेटी के रूपमें देख सकता है, तो नीच-से-नीच और पतित मनुष्य के लिये भी आशा है ? मनुष्य पशु नहीं है । पशुयोनिमें अनगिनत जन्म लेनेके बाद उस पदपर आया । उसका जन्म सिर ऊँचा करके चलनेको हुआ है, लेट कर या पेटके बल रेंगनेको नहीं । पुरुषत्वसे पाशविकता उतनी ही दूर है, जितना आत्मासे शरीर ।"
व्यूरोके वाक्य ये हैं--" संयम में शांति है और असंयम तो अशान्तिरूप महाशत्रुका घर है । असंairat अपनी इन्द्रियोंकी बड़ी बुरी गुलामी करनी पड़ती है । मनुष्यका जीवन मिट्टी के बर्तन के समान है। जिसमें तुम यदि पहली बूँद में ही मैला छोड़ देते हो तो फिर लाख पानी डालते रहो, सभी गन्दा होता जायगा । यदि तुम्हारा मन सदोष है तो तुम उसकी बातें सुनोगे और उसका बल बढ़ाओगे ध्यान रक्खो कि प्रत्येक काम पूर्ति तुम्हारी गुलामीकी जंजीरकी एक नई कड़ी बन जायगी, फिर तो इसे तोड़नेकी तुम्हें शक्ति ही न रहेगी और इस प्रकार तुम्हारा जीवन एक अज्ञानजनित अभ्यासके कारण नष्ट हो जायगा । सबसे अच्छा उपाय तो ऊँचे विचारोंको पैदा करना और सभी कामों में संयमसे काम लेनेमें ही है' ।
अन्तमें संयम और असंयमके परिणाकोंको बतला कर लेखको समाप्त करता हूँ। आपदां कथितः पन्था इन्द्रियाणामसंयमः । तज्जयः संपदां मार्गो येनेष्टं तेन गम्यताम् ॥
अर्थात् इन्द्रियों का असंयम अनेक आपदाओं- रोगों आदिका मार्ग है और उनपर विजय पाना सम्पत्तियों - स्वास्थ्यादिका मार्ग है । इनमें जो मार्ग चुनना चाहें, चुनें और चलें, आपकी इच्छा है ।
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