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प्रकाशित हो चुके हैं । लेकिन अभिनन्दन-ग्रन्थमें ऐसे ही निबन्धोंका संकलन किया गया है, जिनकी उपादेयता आगे आनेवाले समयमें भी उतनी ही है जितनी वर्तमान में है । अथवा जब वे लिखे गये थे । इस तरह ऐसे ५० लेखोंका महत्त्वपूर्ण संग्रह अभिनन्दन-ग्रंथके तीन खण्डोंकी शोभा बढा रहे हैं।
डॉ० कोठियाके महत्त्वपूर्ण निबन्धोंको तीन खण्डोंमें विषय-प्रतिपादनको दृष्टिसे विभाजित किया गया है। तृतीय खण्ड में ऐसे २६ निबन्धोंका संग्रह है जिनका प्रमुख विषय धर्म, दर्शन एवं न्यायके अन्तर्गत आता है। इस खण्डमें वैसे तो सभी निबन्ध उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं तथा जिनमें कितने ही प्रश्नोंका समाधान खोजा जा सकता है लेकिन 'पुण्य और पापका शास्त्रीय दृष्टिकोण', 'करुणा-जीवकी एक शुभपरिणति,' 'जैनधर्म और दीक्षा', 'क्षमा और अहिंसाका विश्लेषण', संजय वेलट्ठिपुत्र और स्याद्वाद्', वैदिक संस्कृतिको श्रमण संस्कृतिकी देन, डॉ. अम्बेडकरसे भेंटवार्ता, जैनदर्शनमें सल्लेखना जैसे कुछ निबन्धोंमें डॉ० कोठियाकी विद्वत्ताको देखा एवं परखा जा सकता है तथा उनके चिन्तनशीलता एक झलकके दर्शन किये जा सकते हैं। ये सभी निबन्ध जैनदर्शन एवं धर्मके अध्येताके लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होंगे तथा उनके आधारपर धर्म, दर्शन एवं न्यायके उलझन भरे प्रश्नोंको सुलझाया जा सकता है।
अभिनन्दन-ग्रंथके चतुर्थ खण्डमें इतिहास एवं साहित्यसे सम्बन्धित निबन्धोंका संकलन किया गया है, जिनकी संख्या १३ है । लेकिन इन इतिहास एवं साहित्यके निबन्धोंका सम्बन्ध भी दर्शनसे ही है । डॉ० कोठिया तो दार्शनिक विद्वान हैं। इसलिये उनका इतिहास एवं साहित्यिक निबन्धोंका विषय भी दार्शनिक ही होता है। इस खण्डके १३ निबन्धोंमें आचार्य कुन्दकुन्द, गृद्धपिच्छ एवं समन्तभद्रके जीवन, व्यक्तित्व, समय एवं कृतित्वपर प्रकाश डालनेके अतिरिक्त कुण्डलगिरि सिद्धक्षेत्रपर भी खोजपूर्वक प्रकाश डाला गया है। उसके अतिरिक्त अनुसन्धानमें पूवग्रिहमुक्ति आवश्यक है इसमें कुछ प्रश्नोंको उठाकर उनका समाधान ढूँढा गया है । अनुसन्धान तो अनुसन्धान ही है, तब तथ्योंकी उपलब्धि है अथवा प्राचीन मान्यताओंके विरोध । समर्थनमें सामग्रीकी खोज है। अनुसन्धानमें यदि हमारा पूर्वाग्रह होगा तो फिर अनुसन्धान ही व्यर्थ सिद्ध होगा। इसी खण्डमें 'संजद' पदपर भी विचार-विमर्श किया गया है। डॉ. कोठियाका वह चिन्तन भी इतिहासकी सामग्री बन गया है।
ग्रंथके पञ्चम खण्डमें डा० कोठियाके विविध विषयपरक लेखोंका संग्रह किया गया है, जिसमें एक ओर आचार्य नमिसागर, पज्य वर्णीजी एवं महापण्डित टोडरमलका जीवन-चरित्र दिया गया है वहीं उनके साथ डाँ० सा०के अपने संस्मरणोंको भी लिपिबद्ध किया गया है। इसके साथ ही श्रतपञ्चमीके स्वरूप एवं उसकी ऐतिहासिकतापर भी प्रकाश डाला गया है।
इसी खण्ड में दशलक्षणपर्व, क्षमापर्व, वीर-निर्वाणपर्व-दीपावली एवं महावीर-जयन्ती जैसे प्रमख सामाजिक पर्वोकी महत्ता एवं उनकी ऐतिहासिकतापर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है। ये सभी पर्व जनमानसको छूनेवाले पर्व है, इसलिये उनकी महत्ताके सम्बन्धमें जानना आवश्यक है । इनके अतिरिक्त अहार, पपौरा, पावापुर एवं श्रवणवेलगोला जैसे लोकप्रिय तीर्थोंपर भी डॉ० कोठियाने अपनी लेखनी चलायी है। श्रवणबेलगोलामें जब महामस्तकाभिषेक होता है तो समूचे विश्वका उसकी ओर ध्यान आकर्षित हो जाता है और इसी दृष्टिसे प्रस्तुत अभिनन्दन-ग्रन्थमें ऐसे निबन्धोंका संकलन किया गया है, जिनको पढ़कर पाठक भविष्यमें नवीन सामग्रीसे लाभान्वित हो सके।
इसी खण्डका एक आकर्षण डॉ० कोठियाके तीन प्रवासोंका वर्णन है। वैसे तो वे वर्ष भरमें चार महीने प्रवासमें ही रहते हैं तथा जन-जनको अपने प्रवचनोंसे लाभान्वित करते रहते हैं। लेकिन हमने राजगृह, काश्मीर एवं बम्बईके प्रवासपर लिखे गये उनके अनुभवोंको इस खण्ड में संकलित किया है।
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