SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हेमचन्द्र, मल्लिषेणके ग्रन्थोंके नाम विशेषतः उल्लेखनीय है । इन ग्रन्थोंके प्रकाशनमें जैन दार्शनिक ग्रन्थोंके महत्त्वसे विद्वानोंको जानकारी मिल गयी है । तथा उनके पठन-पाठनमें गतिशीलता आयी है । इस शताब्दीके दार्शनिकोंने भी अपने-अपने ग्रन्थोंसे दार्शनिक साहित्य के भण्डारमें अभिवृद्धि की है । और इस दृष्टि में पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्यका जैनदर्शन, पं० चैनसुखदास न्यायतीर्थका जैनदर्शनसार (संस्कृत), कैलाशचन्द्र शास्त्रीका जैन न्याय, मनि नथमलजीका जैन न्यायका विकास, के रूप में जो कार्य हआ है वह अत्यधिक प्रशंसनीय है। किन्तु डॉ० कोठियाने दार्शनिक जगत्में सबसे अधिक उल्लेखनीय कार्य किया है और स्याद्वादसिद्धि (वादीभसिंह), प्रमाणप्रमेयकलिका (नरेन्द्रसेन) न्यायदोपिका (अभिनव धर्म भूषण) आप्तपरीक्षा (विद्यानन्द), प्रमाणपरीक्षा (विद्यानन्द) जैसे भूलग्रन्थोंका विद्वत्तापूर्ण सम्पादन करके दार्शनिक जगत्के समक्ष उत्तम साहित्य प्रस्तुत किया है । यही नहीं, 'जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान विचार' के रूप में शोध-प्रबन्ध लिखकर दर्शनसाहित्यके भण्डारकी अभिवृद्धि की है। डॉ० कोठियाके 'जैनदर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन'के नामसे जिस पुस्तकका प्रकाशन हआ है उससे आपके दार्शनिक व्यक्तित्वको परखने में और भी सहायता मिली है और शुद्ध दार्शनिकके रूपमें आपका विद्वत् जगत्को परिचय प्राप्त हुआ है । ___डॉ० कोठिया वर्तमानमें जैन विद्वत् जगत्के एक जगमगाते नक्षत्र है, जिनके ज्ञानके प्रकाशसे सारा समाज एवं देश प्रकाशित है । क्या साहित्यिक क्षेत्र एवं क्या सामाजिक क्षेत्र दोनोंको ही आपकी अमूल्य सेवायें प्राप्त है। यही कारण है कि डा० कोठिया न्यायालंकार, न्यायरत्नाकर, न्यायवाचस्पति जैसी मानद उपाधियोंसे विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित हो चुके है। यही नहीं, विभिन्न नगरों एवं गाँवोंकी जैन समाज द्वारा भी आप सार्वजनिकरूपसे सम्मानित हो चुके है। 'विद्वान सर्वत्र पूज्यते' की उक्ति आपके लिये शतप्रतिशत सही सिद्ध होती है। डॉ० कोठिया एवं उनकी पत्नी श्रीमती चमेली देवी दोनों ही हृदयमें विद्याथियोंके लिए, मेहमानों एवं विद्वानोंके लिए सदा ही पलक पाँवड़े बिछाये रहते हैं । यही कारण है कि वाराणसी जैसे नगरमें सबसे ज्यादा अतिथि आपके यहाँ ही पहुँचते हैं। वे दोनों ही अपनी सीमित आयमेंसे अधिक-से-अधिक राशि दूसरोंके लिये विकीर्ण करते रहते हैं। जब उनको अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पित करनेका प्रश्न आया तो सभीने एक स्वरसे ऐसे शुभ कार्यका समर्थन ही नहीं किया, किन्तु सक्रिय रूपमें किसी-न-किसी रूपमें सहयोग भी देनेकी अपनी इच्छा व्यक्त की। लेकिन उनका अभिनन्दन-ग्रन्थ ऐसे ग्रन्थोंकी परम्परामसे हट कर निकालनेका निश्चय किया गया और उसी निर्णयके फलस्वरूप प्रस्तत अभिनन्दन-ग्रन्थ पाठकोंके समक्ष प्रस्तत है। प्रस्तुत अभिनन्दन-ग्रंथ पाँच खण्डोंमें विभक्त है। प्रथम एवं द्वितीय खण्ड डॉ० कोठियाके जीवन एवं कृतित्वसे सम्बन्धित हैं। एक विद्वानके लिये समाज एवं देशके सैकड़ों-हजारों व्यक्तियोंके कैसे विचार हैं तथा उन्हें वे किन-किन दृष्टियोंसे देखते रहे हैं, उन सबका इन दो खण्डोंमें प्रकाशित शुभकामनाओं एवं लेखोंमें अच्छी तरह पता चलता है। डॉ० कोठियाका जीवन जिस प्रकार दर्शन-साहित्य एवं समाज-विकासके लिये समर्पित है उसी तरह उनका जीवन समाजके लिये एक धरोहरके रूपमें है, जिसपर उनसे भी अधिक समाजका अधिकार है । यही कारण है कि समाजके सभी वर्गोंने उनके दीर्घ एवं यशस्वी जीवनकी कामना की है । एक ओर जैनाचार्योंने उनके यशस्वी जीवनके किये अपना शुभाशीर्वाद दिया है और अपनी शुभकामनाओंसे उनके व्यक्तित्वको प्रशंसा की है वहीं दूसरी ओर समाजनेताओं, विद्वानों, साहित्यसेवियोंने शतायुः होकर इसी तरह सेवा करते रहनेकी शुभकामनाएँ प्रगट की है। वास्तवमें समाजके श्रेष्ठीवर्ग, नेतागण एवं विभिन्न संस्थाओंके अधिकारीगण सभीने एक स्वरसे उनके दीर्घ जीवनकी कामना की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012020
Book TitleDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherDarbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy