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श्री कन्याहेलाल 'कमल' २५ १६ प्रतिपत्तियां २६ २० प्रतिपत्तियां २७ २५ प्रतिपत्तियां २८ २० प्रतिपत्तियां
३ प्रतिपत्तियां ३ प्रतिपत्तियां २५ प्रतिपत्तियां
२ प्रतिपत्तियां' ९६ प्रतिपत्तियां
प्रतिपत्तियां ५ प्रतिपत्तियां २५ प्रतिपत्तियां
प्रतिपत्तियां १००
प्रतिपत्तियां १०२ २ प्रतिपत्तियां १०३ २ प्रतिपत्तियां
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एक व्यापक भ्रान्ति दोनों उपांगों के दसवें प्राभृत के सत्रहवें प्राभृत-प्राभृत में प्रत्येक नक्षत्र का पृथक्-पृथक् भोजन विधान है।
क-इन प्रतिपत्तियों के पूर्व के प्रश्नसूत्र विच्छिन्न हैं । ख-इन प्रतिपत्तियों के बाद स्वमत प्रतिपादक सुत्रांश भी विच्छिन्न है।
उपांगद्वय के संकलनकर्ता ने प्रतिपत्तियों के जितने उद्धरण दिए हैं उनके प्रमाणभूत मूल ग्रन्थों के नाम ग्रन्थकारों के नाम अध्याय, श्लोक, सूत्रांक आदि नहीं दिए हैं ।
बहुश्रुतों का कर्तव्य :
उपांगद्वय में उद्धृत प्रतिपत्तियों के स्थल निर्देश करना प्रमाणभूत ग्रन्थ से प्रतिपत्ति की मूल वाक्यावली देकर अन्य मान्यता का निरसन करना और स्वमान्यताओं का युक्तिसंगत प्रतिपादन करना इत्यादि आधुनिक पद्धति की सम्पादन प्रक्रिया से सम्पन्न करके उपांग द्वय को प्रस्तुत करना।
अथवा-किसी शोध संस्थान के माध्यम से चन्द्र-सूर्यप्रज्ञप्ति पर विस्तृत शोध निबन्ध लिखवाना।
किसी योग्य श्रमण-श्रमणी या विद्वान् को शोध निबन्ध के लिए उत्साहित करना । शोध निबन्ध लेखन के लिए आवश्यक ग्रन्थादि की व्यवस्था करना। शोध निबन्ध लेखक का सम्मान करना । ये सब श्रुतसेवा के महान् कार्य हैं ।
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