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________________ पूर्वक कार्य किया है। सम्पादन एवं प्रेस के फलस्वरूप प्रत्याशित-अप्रत्याशित रूप से विलम्ब होता ही रहा । पं. जी के अभिनन्दन ग्रन्थ हेतु हमें जितने लेख प्राप्त हुए हैं वे सभी अभी तक सम्पादित भी नहीं हो पाये हैं तथा गुजराती लेखों के मुद्रण की व्यवस्था में भी वाराणसी में कठिनाई हो रही है। इसलिए हमने यह निर्णय लिया कि जितनी सामग्री मुद्रित हो चुकी है उसे इस अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रथम खण्ड के रूप में प्रकाशित कर दिया जाय और शेष सामग्री को दूसरे खण्ड में प्रकाशित किया जायेगा । हमें निश्चय ही यह दुःख है कि इतने लम्बे अंतराल के पश्चात् भी सम्पूर्ण सामग्री को एक साथ प्रकाशित नहीं कर पा रहे हैं, किन्तु जो अंश मुद्रित हो चुका है वह विद्वानों को उपलब्ध हो सके यह सोचकर हमने इसे अपूर्ण रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है । हिन्दी और अंग्रेजी लेखों का मुद्रण साथ-साथ चल सके इसलिए हमें हिन्दी खण्ड और अंग्रेजी खण्ड के पृष्ठों की संख्या भी पृथक्-पृथक् रखनी पड़ी है। प्रो० ढाकी ने इसके अंग्रेजी विभाग का संपादन अत्यन्त सतर्कता एवं श्रमपूर्वक किया है। वर्तमान युग में संपादन में इतनी सतर्कता रखने वाले और श्रम करने वाले दुर्लभ ही हैं। प्रो० ढाकी ने इस दायित्व का जितनी प्रामाणिकता से निर्वाह किया है उसके लिए हमारे पास उनके प्रति आभार व्यक्त करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। ग्रन्थ के हिन्दी खण्ड के संपादन तथा मुद्रण आदि का भार संस्थान के निदेशक डा० सागरमल जैन ने वहन किया एतदर्थ हम उनके प्रति भी आभार प्रकट करते हैं । प्रूफ संशोधन में डा० सागरमल जैन के अतिरिक्त डा० अरुण प्रताप सिंह, डा० अशोक कुमार सिंह, डा० शिवप्रसाद, डा० इन्द्रेशचन्द्र सिंह, श्री महेश जी का भी सहयोग प्राप्त हुआ है। वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं। प्रो० ढाकी ने अंग्रेजी विभाग के अंतिम प्रूफ को देखकर इसके प्रामाणिक मुद्रण में विशेष सहयोग प्रदान किया है अतः हम पुनः उन्हें धन्यवाद देते हैं । इस ग्रन्थ के हिन्दी और अंग्रेजी खण्डों का मुद्रण रत्ना प्रिंटिंग प्रेस और डिवाइन प्रिंटर्स ने सम्पन्न किया। अतः हम इन मुद्रणालयों के व्यवस्थापकों के प्रति भी आभार प्रकट करते हैं। अन्त में हम उन सभी के आभारी हैं जो इस ग्रन्थ के प्रकाशन में परोक्ष या प्रत्यक्ष सहभागी बने हैं विशेष रूप से उन सभी विद्वज्जनों के जिनके आलेख इसमें समाहित किये गये हैं। यह उनके ही श्रम का फल है कि ग्रन्थ का आकार प्राप्त कर सका। अन्त में हम पूज्य पंडित जी के चरणों में प्रणाम करते हुए उन्हें यह ग्रन्थ समर्पित करते है। भूपेन्द्र नाथ जैन सचिव पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान आई० टी० आई० रोड, वाराणसी-५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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