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________________ प्रकाशकीय बीसवीं सदी के जैनविद्या के मूर्धन्य मनीषियों में पण्डित बेचरदास जी दोशी का नाम अग्रगण्य है। वर्तमान युग के जैनविद्या एवं प्राकृत विद्वानों की शृंखला में पण्डित बेचरदास जी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनकी यह विशिष्टता मात्र श्वेताम्बर जैन-परम्परा के आगमों के तलस्पर्शी ज्ञान के कारण नहीं बल्कि सत्य को निर्भीकतापूर्वक व्यक्त करने के साहस के कारण थी। सामान्यतया विद्वद्वर्ग अपने साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों के कारण सत्य-प्रतिपादन से कतराता है। किन्तु पं० बेचरदास जी का स्वभाव था कि समाज के विरोध की चिन्ता किये बिना वे निर्भीक व बेलाग होकर सत्यकथन करते थे। उनके द्वारा लिखित ग्रन्थ 'जैनागमों मां विकार थवाथी थयेली हानिओ' उनकी निर्भीकता का पुष्ट प्रमाण है। विद्वान् होना एक अलग बात है किन्तु विद्वत्ता और निर्भीकता का ऐसा संयोग दुर्लभ होता है। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित जैन साहित्य के बृहद् इतिहास का प्रथम भाग भी उनकी साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों से उन्मुक्त सत्यान्वेषणशीलता एवं निर्भीकता का स्पष्ट प्रमाण है। पण्डित बेचरदास जी प्रारम्भ से ही पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के मार्गदर्शक रहे हैं और इसके विकास के प्रत्येक चरण में उनका भी अमूल्य सहयोग रहा है। अतः उनके जीवन-काल में ही विद्याश्रम ने उनके अभिनन्दन का निश्चय कर उनके सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन की योजना बनायी थी इसकी सूचना विद्वानों को प्रेषित कर दी गई थी और विद्वानों के अनेक लेख भी हमें प्राप्त हो गये थे। दुर्भाग्य से उनके जीवन-काल में इसका मुद्रण नहीं हो सका और अभिनन्दन ग्रन्थ स्मृति ग्रन्थ में परिणत हो गया। संस्थान द्वारा विगत कई वर्षों से जैनविद्या से सम्बन्धित एक स्तरीय शोध-पत्रिका के नियमित प्रकाशन की योजनाविचाराधोन थी क्योंकि श्रमण के अधिकांश पाठकों का रुझान स्तरीय निबन्धों के प्रति न होने से उसके माध्यम से यह पूर्ति नहीं हो पाती थी। इस योजना को मूर्तरूप देने हेतु हमने Aspects of Jainology Series के अन्तर्गत स्तरीय निबन्धों को प्रकाशित करने का निश्चय किया। इस ग्रन्थमाला का प्रथम पुष्प हमने संस्थान के संस्थापक स्वर्गीय लाला हरजस राय जैन की पुण्य स्मृति में अर्पित किया। उसी शृखला में हम इसके द्वितीय पुष्प को श्रद्धेय स्वर्गीय पण्डित बेचरदास जी दोशी को समर्पित कर रहे हैं। इस स्मृति ग्रन्थ हेतु हमें पर्याप्त संख्या में विद्वानों ने स्तरीय निबन्ध भेजे । निबन्ध मुख्यतः गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में प्राप्त हुए। वाराणसी में गुजराती-भाषा के निबन्धों के मुद्रण की सुविधा न होने से उन्हें पण्डित दलसुख भाई मालवणिया के निर्देशन में अहमदाबाद में ही मुद्रित करवाने का निर्णय लेना पड़ा । फलतः अंग्रेजी, हिन्दी और गुजराती खण्डों को पृष्ठ संख्या भी पृथक्पृथक् ही रखनी पड़ी। प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन का दायित्व-निर्वाह भारतीय कला एवं जैन विद्या के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् प्रो० मधुसूदन ढाकी और संस्थान के निदेशक डा० सागरमल जैन ने किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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