SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम साहित्य में स्तूप स्थानांग आदि आगमों की टीकाओं में स्तूप, चैत्यस्तूप एवं स्तूपमह का उल्लेख मिलता है। आचारांग में स्वतन्त्र रूप से स्तप शब्द का प्रयोग न होकर 'चैत्यकृत स्तप' (थभं, वा चेइयकडं)-इस रूप में प्रयोग हुआ है। यहाँ चेइयकडं शब्द के अर्थ को स्पष्ट कर लेना होगा । चेइयकडं शब्द भी दो शब्दों के योग से बना है-चेइय + कडं। प्रो० ढाकी का कहना है कि कडं शब्द प्राकृत कूड या संस्कृत कूट का सूचक है, जिसका अर्थ होता है-ढेर ( Heap ), विशेष रूप से छत्राकार आकृति का ढेर। इस प्रकार वे "चेइयकडं" का अर्थ करते हैं-कुटाकार या छत्राकार चैत्य तथा थभ को इसका पर्यायवाची मानते हैं। किन्तु मेरी दृष्टि में 'चेइयकर्ड' शब्द थूभ ( स्तूप ) का विशेषण है, पर्यायवाची नहीं। चेइयकडं थूभ ( चैत्यीकृत स्तूप ) का तात्पर्य है-चिता या शारीरिक अवशेषों पर निर्मित स्तूप अथवा चिता या शारीरिक अवशेषों से सम्बन्धित । सम्भवतः वे स्तूप जो चिता-स्थल पर बनाये जाते थे अथवा जिनमें किसी व्यक्ति के शारीरिक अवशेष रख दिये जाते थे, चैत्यीकृत स्तूप कहलाते थे। यहाँ कडं शब्द कूट का वाचक नहीं अपितु कृत का वाचक है । भगवती में कडं शब्द कृत का वाचक है । पुनः कडं का कूट करने पर 'रुक्खं वा चेइयकडं' का ठीक अर्थ नहीं बैठेगा। “रुक्खं वा चेइयकर्ड" का अर्थ है-चिता-स्थल या अस्थि आदि के ऊपर रोपा गया वृक्ष । चेइयकडं का अर्थ पूजनीय भी किया जा सकता है। प्रो० उमाकांत शाह ने यह अर्थ किया भी है, किन्तु मेरी दृष्टि में यह परवर्ती अर्थ-विकास का परिणाम है। अतः जैन साहित्य में स्तूप शब्द के अर्थ-विकास को समझने के लिए चैत्य शब्द के अर्थ-विकास को समझना होगा। संस्कृत कोशों में चैत्य शब्द के पत्थरों का ढेर, स्मारक, समाधिप्रस्तर, यज्ञमण्डल, धार्मिक पूजा का स्थान, वेदी, देवमूर्ति स्थापित करने का स्थान, देवालय, बौद्ध और जैन मन्दिर आदि अनेक अर्थ दिये गये हैं। किन्तु ये विभिन्न अर्थ चैत्य शब्द के अर्थ-विकास की प्रक्रिया के परिणाम हैं। याज्ञवल्क्यस्मृति में श्मशान-सीमा में स्थित पुण्य स्थान के रूप में भी चैत्य शब्द का उल्लेख १ (क). एमेव य साहूणं, वागरणनिमित्तच्छन्दकहमादी। बिइयं गिलाणतो मे, अद्धाणे चेव थभे य॥ (ख). महुरा खमगा य, वणदेवय आउट्ट आणविज्जत्ति । कि मम असंजतीए, अप्पत्तिय होहिती कज्जं ॥ थूभ वि उ घण भिच्छू विवाय छम्मास संघो को सत्तो । खमगुस्सग्गा कंपण खिसण सूक्का कय पडागा ॥ -व्यवहार चुणि, पंचम उद्देशक, २६, २७, २८ । २. प्रो० मधुसूदन ढाकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर उनका यह मत प्रस्तुत किया गया है । ३. "कडमाण कडे"-भगवती सूत्र, १११।१ । ४. “In both the above-mentioned cases, namely, cetita-thubha and the cetitarukkha, the sense of a funeral relic is not fully warranted.” --Studies in Jain Art, U. P. Shah, P. 53. ५. संस्कृत हिन्दी कोश-वामन शिवराम आप्टे, पष्ठ ३२७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy