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खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर : ब्राह्मण एवं जैन धर्मों के समन्वय का मूर्तरूप
डॉ० मारुति नन्दन प्रसाद तिवारी जैन धर्म में समन्वय का भाव अत्यन्त उदार रहा है। इसी कारण ब्राह्मण धर्म के देवीदेवताओं को जैन देवमण्डल में उदारतापूर्वक सम्मिलित किया गया है। जैन धर्म की ६३ शलाकापुरुषों की सूची में राम, बलराम एवं कृष्ण वासुदेव के अतिरिक्त रावण एवं जरासंध भी सम्मिलित हैं।' राम और कृष्ण ब्राह्मण धर्म के दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण चरित्र रहे हैं। जनमानस में इनकी विशेष लोकप्रियता के कारण ही जैन देवमण्डल में इन्हें क्रमशः २०वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के समकालीन ८वें बलदेव और २२वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ के चचेरे भाई के रूप में ९वें वासुदेव के रूप में मान्यता मिली। मथुरा की कुषाणकालीन नेमिनाथ-मूर्तियों में सर्वप्रथम बलराम और कृष्ण का निरूपण हुआ है। मथुरा के अतिरिक्त बलराम और कृष्ण का अंकन देवगढ़ (मन्दिर-२, १०वीं शती ई०) की नेमिनाथ मूर्तियों में तथा विमलवसही एवं लूणवसही (१२वीं-१३वीं शती ई०) के वितानों पर देखा जा सकता है। कृष्ण की तुलना में राम का शिल्पांकन लोकप्रिय नहीं था। राम की मतियाँ केवल खजराहो के पाश्र्वनाथ जैन मन्दिर पर ही मिलती हैं। २४ तीर्थंकरों के शासन देवताओं के रूप में निरूपित यक्ष और यक्षियों में भी अधिकांश ब्राह्मण प्रभाव से युक्त हैं। इनके विष्णु, शिव, ब्रह्मा, इन्द्र, स्कन्द कात्तिकेय, काली, गौरी, सरस्वती, चामुण्डा के नामों और लक्षणों के प्रभाव देखे जा सकते हैं। ऋषभनाथ के गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी तथा श्रेयांसनाथ के ईश्वर यक्ष और गौरी यक्षी इस प्रभाव को पूरी तरह स्पष्ट करते हैं।
जैन देवमण्डल में ब्राह्मण देवी-देवताओं के सम्मिलित किए जाने के अन्य कई उदाहरण भी दिए जा सकते हैं । किन्तु यहाँ खजुराहो के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर पर आकारित ब्राह्मण देव-मूर्तियों का दोनों धर्मों के समन्वय की दृष्टि से अध्ययन ही हमारा अभीष्ट है ।
मध्य प्रदेश के छत्तरपुर जिले में स्थित खजुराहो, मूर्तियों और मन्दिरों के कारण विश्व प्रसिद्ध है । चन्देल शासकों के संरक्षण में लगभग ९वीं से १२वीं शती ई० के मध्य इस स्थल पर शैव, वैष्णव, शाक्त एवं जैन धर्मों से सम्बन्धित मन्दिरों और मूर्तियों का निर्माण हुआ। खजुराहो के
१. पउमचरिय, ५-१४५-५७ । २. राम से सम्बन्धित ग्रन्थों में विमलसूरि कृत पउमचरिय ( ४७३ ई० ) और कृष्ण से सम्बन्धित ग्रन्थों में
उत्तराध्ययनसूत्र, नायाधम्मकहाओ एवं अंतगड्दसाओ जैसे तीसरी-चौथी शती ई० के प्रारम्भिक ग्रन्थों के अतिरिक्त जिनसेनकृत हरिवंशपुराण (७८३ ई०), महापुराण एवं हेमचन्द्र कृत त्रिशस्टिशलाका
पुरुष चरित्र मुख्य हैं। ३. राज्य संग्रहालय, लखनऊ जे. ८, जे. ४७, जे. १२१; मथुरा संग्रहालय, २५०२ । ४. कालियदमन, कंदुक क्रीड़ा, नृसिंहमूर्ति ( विमलवसहो); कृष्ण जन्म एवं बाललीला के दृश्य ( लूणवसही)।
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