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________________ कु० रीता बिश्नोई युद्ध में मारे जाने पर मन्त्रियों की सलाह से जरासन्ध राजा, मेचक राजा को सेनापति नियुक्त करता है। पुरोहित राष्ट्र की रक्षा के लिये पुरोहित को नियुक्त करना भी आवश्यक माना गया है। कौटिल्य के अनुसार पुरोहित को शास्त्र-प्रतिपादित विद्याओं से युक्त, उन्नतशील षडङ्गवेत्ता, ज्योतिषशास्त्र, शकुनशास्त्र तथा दण्डनीतिशास्त्र में अत्यन्त निपुण और दैवी तथा मानुषी आपत्तियों के प्रतिकार में समर्थ होना चाहिये । याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार पुरोहित को ज्योतिषशास्त्र का ज्ञाता, सब शास्त्रों में समृद्ध, अर्थशास्त्र में कुशल तथा शान्ति कर्म में निपुण होना चाहिये। मनु के अनुसार भी पुरोहित को गृह्य कर्म तथा शान्त्यादि में निपुण होना चाहिये । __ संक्षेप में कहा जा सकता है कि राष्ट्र में धर्म-प्रतिनिधि पुरोहित था। इस पद का महत्त्व वैदिक युग से ही रहा है । पुरोहित का अर्थ है- आगे स्थापित (पुर एवं दधति )। पाण्डव पुराण में पुरोहित को 'पुरोधः' कहा गया है। वैसे तो पुरोहित धार्मिक सत्कार्य करने के लिये नियुक्त होते थे लेकिन राजा दुर्योधन के यहाँ एक ऐसे पुरोहित का उल्लेख भी आया है जो धन के लालच में आकर पाण्डवों के निवास लाक्षागृह को जलाने को तैयार हो जाता है। राजा युधिष्ठिर का धर्मोपदेश करने वाले पुरोहित के रूप में राजा विराट के यहाँ एक वर्ष तक ( गुप्त रूप से ) रहने का वर्णन भी आया है । सेनापति राज्य के सप्ताङ्गों में सेनापति का स्थान भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है । सेना की सफलता योग्य सेनापति के अधीन होती है। युद्ध भूमि में वह सम्पूर्ण सेना का सञ्चालन करता है। अर्थशास्त्र के अनुसार सेनापति को सेना के चारों अङ्गों के प्रत्येक कार्य को जानना चाहिये । प्रत्येक प्रकार के युद्ध में सभी प्रकार के शस्त्र-शास्त्र के सञ्चालन का परिज्ञान भी उसे होना चाहिये । हाथी-घोड़े पर चढ़ने और रथ सञ्चालन करने में अत्यन्त प्रवीण होना चाहिये। चतुरङ्गी सेना के प्रत्येक कार्य का उसे परिज्ञान होना चाहिये । युद्ध में उसका कार्य अपनी सेना पर पूर्ण नियन्त्रण रखने के साथ ही साथ शत्रु की सेना को नियन्त्रित करना है । महाभारत में सेनापति में अनेक गुणों का होना आवश्यक १. पाण्डव पुराण, १९॥६६ । २. कौटिल्य अर्थशास्त्र, अधिकार, प्रकरण ४ अध्याय ४, पृ० २४ । ३. याज्ञवल्क्यस्मृति, १.३.१३ । ४. मनुस्मृति, ७७८ । ५. यास्क निरुक्त २.१२ । ६. पाण्डव पुराण, १२।१३२-१३८ । ७. पाण्डव पुराण, १७२४४ । ८. अर्थशास्त्र अधिकार २, प्रकरण ४९-५० अध्याय ३३, पृ० २३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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