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सुमन जैन
इति श्री आदिनाथ स्वामी शतक सम्पूर्णम् । शुभमिति आश्विन शुक्ल चतुर्थी बुधवासरेषु विक्रमीयाब्द १९८१ ।
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डॉ० प्रेम
इस तरह अज्ञात कवि द्वारा प्राकृत में रचित यह शतकत्रय नीति, धर्म, एवं वैराग्य विषय की एक महत्वपूर्ण रचना है । विभिन्न पाण्डुलिपियों के अध्ययन से इसका प्रामाणिक संस्करण तैयार करने की जरूरत है । हिन्दी अनुवाद के साथ यदि यह प्रकाशित किया जाय तो स्वाध्याय के लिये यह उपयोगी ग्रन्थ होगा । भर्तृहरि के शतकत्रय की भाँति विद्वत् जगत् इस प्राकृत शतकत्रय से भी परिचित हो सकेंगे'।
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अध्यक्ष, जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, - २१, सुन्दरवास
उदयपुर ।
उदयपुर (राज० )
१. इस शतकत्रय की पाण्डुलिपि की प्राप्ति हेतु पं० दयाचन्द्र जी शास्त्री, व्यवस्थापक, ऐ० पन्नालाल सरस्वती भवन, उज्जैन के प्रति आभार ।
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इस लेख में उल्लिखित इन्द्रिय ( पराजय ) शतक और वैराग्यशतक प्रकाशित है और उनकी आदि अन्त की गाथाएँ समान हैं । —सम्पादक
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