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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : नवम खण्ड
उनसे नीचे महा नाम का प्रजाति का लोक है, उनसे नीचे माहेन्द्र लोक है, उनसे नीचे तारा लोक है और उनसे नीचे मनुष्यों का लोक है । पृथ्वी के ऊपर छः और नीचे १४ लोक हैं जिनमें सबसे नीचा अवीच नाम का नरक है। लोकों की व्यवस्था का अन्य अनेक संस्कृत ग्रन्थों में भी उल्लेख पाया जाता है। सूर्य पर संयम करने से इनके ज्ञान की बात प्रामाणिक नहीं है।
३. ताराव्यूह का ज्ञान-पतंजलि के अनुसार चन्द्रमा पर संयम करने से ताराव्युह का ज्ञान होता है। भाष्यकार की व्याख्या को विस्तारपूर्वक पढ़ने से इस सिद्धि की बात भी समझ में आने वाली नहीं लगती।
४. मनःपर्याय–पतंजलि के योगसूत्र के अनुसार यदि दूसरे के मन की क्रिया पर संयम किया जाये तो उसके मन की बातों का पता लगाया जा सकता है। भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित करने से भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। नाभि पर ध्यान लगाने से सम्पूर्ण शरीर रचना का ज्ञान होता है। कर्ण और आकाश के सम्बन्ध पर ध्यान लगाने से मीलों दूर बोला जाने वाला शब्द सुनायी पड़ता है। आत्मा पर संयम करने से मन.पर्याय की शक्ति प्राप्त होती है। इसी से भविष्य का ज्ञान भी प्राप्त होता है।
५. सर्वज्ञानित्व-आत्मा और जड़ पदार्थ के विवेक पर संयम करने से सर्वज्ञानित्व प्राप्त होता है। कुछ लोगों को इसके बिना भी यह सिद्धि प्राप्त हो जाती है। रूप, काल तथा वस्तु की विभिन्न दशाओं पर संयम करने से भी भूत, वर्तमान और भविष्य का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इसी प्रकार चित्त का यथार्थ वृत्तियों पर संयम करने से भी यह सिद्धि प्राप्त होती है।
६. अतीन्द्रियप्रत्यक्ष-समाधि की प्रक्रिया में योगों को अतीन्द्रियप्रत्यक्ष की शक्ति प्राप्त होती है। धर्ममेधसमाधि की स्थिति में वह सब कुछ जान सकता है।
समाधि की प्रक्रिया के अतिरिक्त अष्टांग योग के अन्य अंगों का अभ्यास करने से भी अनेक प्रकार की सिद्धियों के मिलने का उल्लेख किया गया है। उदाहरण के लिए, योग में प्रथम सोपान यम है। यम के अभ्यास से योगी भयंकर पशुओं तक की हिंसात्मकता को दूर कर देता है। उसके सम्पर्क में आने वाले पशु भी हिंसा भूल जाते हैं । नियम के पालन से भी अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं जैसे अत्यधिक आनन्द, दिव्य दृष्टि, इष्ट देवता की सिद्धि, ध्यान की सिद्धि इत्यादि । आसन का अभ्यास करने से अनेक प्रकार की शारीरिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। प्राणायाम से मन प्रकाशयुक्त हो जाता है और किसी भी वस्तु पर ध्यान को एकाग्र किया जा सकता है। प्रत्याहार से इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं।
धारणा, ध्यान और समाधि को मिलाकर संयम नाम दिया गया है। संयम की शक्ति का पीछे वर्णन किया जा चुका है । शरीर पर संयम करने से अदृश्य होने की शक्ति मिलती है। तत्काल और भविष्य के कर्म पर संयम करने से भावी मृत्यु का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। मंत्री पर संयम करने से मित्रता की शक्ति प्राप्त होती है। हाथी इत्यादि पशुओं पर संयम करने से अजेय शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है। आन्तरिक ज्योति पर संयम करने से भूगर्भशास्त्र का ज्ञान प्राप्त होता है । सूर्य, चन्द्र, नाभि इत्यादि के संयम के विषय में पीछे उल्लेख किया जा चुका है। ध्रुव तारे पर संयम करने से तद्विषयक ज्ञान प्राप्त होता है। गले पर संयम करने से भूख और प्यास पर अधिकार हो जाता है। ब्रह्मरन्ध्र पर संयम करने से वासनाओं पर नियन्त्रण किया जा सकता है। भ्रकुटि के मध्य संयम करने से स्थिरता और सन्तुलन प्राप्त होता है। बन्धन और मोक्ष के कारणों पर संयम करने से दुसरे के शरीर में प्रवेश करने की शक्ति प्राप्त होती है। उदानवायू पर संयम करने से पृथ्वी से ऊपर उठ जाने की शक्ति प्राप्त होती है। समानवायु पर संयम करने से इच्छा-मृत्यु की शक्ति प्राप्त होती है। शरीर पर संयम करने से आकाश में यात्रा की जा सकती है। आकाश पर संयम करने से भी इसी प्रकार की शक्ति प्राप्त होती है। वस्तुओं के गुणों, सम्बन्धों और प्रयोजनों पर संयम करने से अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं जैसे शरीर को अणु के समान सूक्ष्म बना लेना अथवा अत्यन्त विशाल बना लेना, चाँद और सितारों को छु लेना, किसी भी वस्तु को प्राप्त कर लेना अथवा बना देना, भूत जगत पर अधिकार इत्यादि । इन्द्रियाँ, अहंकार और उनके गुणों पर संयम करने से योगी इन्द्रियजयी हो जाता है। इससे वह प्रधानजय हो जाता है। वस्तुओं के परिवर्तनों पर संयम करने से उन में विवेक की शक्ति प्राप्त होती है। इस प्रकार पतंजलि के योगसूत्र में संयम के भिन्न-भिन्न आधारों के अन्तर से विभिन्न प्रकार की शक्तियों के प्राप्त होने का उल्लेख किया गया है । यह विवरण कहाँ तक प्रामाणिक है, इसका तर्क से विवेचन न करके यौगिक क्रियाओं की प्रयोगात्मक जाँच से पता लगाया जा सकता है। वेदों तथा उपनिषदों में योग और परामनोविज्ञान
अथर्ववेद में तपस्वियों की अतिसामान्य शक्ति का उल्लेख है। योग का ऋग्वेद में भी उल्लेख किया
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