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________________ योग और परामनोविज्ञान ६७ . + + + + + + + योग और परामनोविज्ञान डा० रामनाथ शर्मा डी. फिल. (प्रयाग), डी. लिट. (मेरठ) योग शब्द का शाब्दिक अर्थ जोड़ना, मिलाना, मिलाप, संगम अथवा मिश्रण है। इसके अतिरिक्त रघुवंश में इसका अर्थ सम्पर्क, स्पर्श और सम्बन्ध आदि से लगाया गया है। मनुस्मृति में इसे काम में लगाना, प्रयोग, इस्तेमाल आदि के अर्थ में लिया गया है। हितोपदेश में इसे पद्धति, रीति, क्रम, साधन के अर्थ में प्रयोग किया गया है। अन्य स्थानों पर इसको फल, परिणाम, जूआ, वाहन, सवारी गाड़ी, जिरहबख्तर, योग्यता, औचित्य, उपयुक्तता, व्यवसाय, कार्य, व्यापार, दाव-पेंच, जालसाजी, कूटनीति, योजना, उपाय आदि के भी अर्थ में प्रयोग किया गया है। मनुस्मृति में इसका प्रयोग उत्साह, परिश्रम और अध्यवसाय के अर्थ में भी हुआ है। योग का प्रयोग उपचार, चिकित्सा, इन्द्रजाल, अभिचार, जादू-टोना, धन-दौलत, नियम, विधि, सम्बन्ध, निर्वचन, गम्भीर भाव, चिन्तन, मन का केन्द्रीकरण आदि अर्थों में भी हुआ है। पतंजलि ने योगसूत्र में इसे चित्तवृत्ति-निरोध कहा है। साधारणतया दार्शनिक ग्रन्थों में योग को इसी अर्थ में इस्तेमाल किया गया है। इस योग में उन उपायों की शिक्षा दी गयी है जिनके द्वारा मानव आत्मा पूर्ण रूप से परमात्मा में लीन होकर मोक्ष प्राप्त करता है। इसीलिए योग मन के संकेन्द्रीकरण का अभ्यास माना गया है। गणित में योग का अर्थ जोड़ या संकलन होता है। ज्योतिषशास्त्र में इससे तात्पर्य संयुति, दो ग्रहों का योग, तारापुंज, समय विभाग, मुख्य नक्षत्र इत्यादि माना गया है। इसके अतिरिक्त योग को आचार के अर्थ में भी इस्तेमाल किया गया है। योगदर्शन का अध्यापक आचार्य कहलाता था। उसे अलौकिक शक्ति सम्पन्न, जादूगर, देवता इत्यादि माना जाता था। योग को जादू जैसी शक्ति भी माना गया है। अनेक दार्शनिक ग्रन्थों में योग को समाधि के अर्थ में प्रयोग किया गया है। चिकित्साशास्त्र के ग्रन्थों में योग को अनेक प्रकार के चूर्ण के अर्थ में भी प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार योगिन् (योगी) शब्द को भी अनेक अर्थों में प्रयोग किया गया है जैसे युक्ति सहित या जादू की शक्ति से युक्त, चिन्तनशील, महात्मा, भक्त, संन्यासी, जादूगर, ओझा, बाजीगर, इत्यादि । प्रस्तुत लेख में योग शब्द को उन विधियों के लिए प्रयोग किया जायेगा जो भारतीय विचारकों ने आत्मा के आध्यात्मिक विकास के लिए समाधि की स्थिति प्राप्त करने के लिए या मोक्ष प्राप्त करने के लिए बतायी थीं। योग साहित्य उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारतीय साहित्य में योग शब्द को अनेक अर्थों में प्रयोग किया गया है। रामायण, महाभारत, महापुराण, उपपुराण, स्मृतियों, धर्मशास्त्र, वेद और संहिताएँ, षड्दर्शनग्रन्थ, बौद्धग्रन्थ, जैन साहित्य आदि में योग के विवरण भरे पड़े हैं । तन्त्र साहित्य में भी योग के लम्बे-चौड़े विवरण मिलते हैं। इस प्रकार वैदिक और अवैदिक सभी प्रकार के धार्मिक और दार्शनिक सम्प्रदायों में योग की चर्चा की गयी है। योग में आत्मा की मान्यता आवश्यक नहीं है। उदाहरण के लिए बौद्ध दार्शनिक आत्मा को नहीं मानते किन्तु योग की चर्चा करते हैं । योग शब्द का भारत में इतना प्रयोग हुआ है कि केवल हिन्दू, बौद्ध अथवा जैन सन्तों ने ही नहीं बल्कि मुस्लिम सूफियों ने भी इस शब्द का व्यापक प्रयोग किया है। इस प्रकार अति प्राचीनकाल से बैदिक ऋषियों से लेकर आधुनिक काल में श्री अरविन्द और विवेकानन्द तक भारत में योग की परम्परा रही है। योग और परामनोविज्ञान पश्चिम में मनोविज्ञान के इतिहास में अनुसन्धान का सबसे अधिक अर्वाचीन क्षेत्र परामनोविज्ञान है। इसमें, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, अनुभव के कुछ ऐसे क्षेत्रों में अनुसन्धान किया जा रहा है जिन्हें परा (Para) कहा जा सकता है । परा से तात्पर्य असाधारण लगाया जाना चाहिये । इस प्रकार के अनुभवों में अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष सबसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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