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योग : स्वरूप और साधना
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इस उपलब्धि का लाभ करना तथा कराना उत्तरदायित्व का काम है। इस उत्तरदायित्व को कौन बहन करे ? भारत में एक बहुत बड़ा समाज ऐसा है जिसे समाज ने आर्थिक-सामाजिक चिंताओं से मुक्त किया हुआ है और जिन्हें भारतीय योग की परम्परा मान्य है। यहाँ हमारा संकेत भारत भर के अनेक सम्प्रदायों में बिखरे हुए उन साधु-संन्यासियों की ओर है; जिन्होंने विचारपूर्वक यम-नियम के मार्ग पर चलने का व्रत लिया है। यम-नियम आदि की सूक्ष्म प्रक्रियायें उनके जीवन की हर गतिविधि में परिलक्षित होनी चाहिए। इन लोगों को आगे आकर उन लोगों की सहायता करनी चाहिए जो 'योग' को 'वैज्ञानिक कसौटी' पर परख कर, आधुनिक-जीवन की आवश्यकताओं के अनुसार, उसका पुनमूल्यांकन करना चाहते हैं । आधुनिक युग के जीवन की गतिशीलता और व्यस्तता को ध्यान में रखकर उसका पुनर्मूल्यांकन होना नितान्त आवश्यक है । गुरु-शिष्य परम्परा की प्राचीन समाज के अनुकूल कठोर परिपाटी को आज ज्यों का त्यों अपनाने से 'गुरुडम' ही अधिक विकसित हुआ है जिससे योग की सम्बन्ध में भ्रान्तियाँ उत्पन्न होती हैं।
बहुत ही संक्षेप में मैंने योग के कुछ दृष्टिकोण पर चिन्तन प्रस्तुत किया है । आशा है विज्ञगण इस पर चिन्तन करेंगे।
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योग में विभिन्न परम्पराएँ
भारतीय दार्शनिक परम्परा में योग का महत्त्व इसलिए है कि इसमें एक जीवन प्रणाली का क्रमबद्ध स्वरूप उपलब्ध है। आजकल विश्व में सम्भवतः योग ही सर्वाधिक चर्चित विषय है। 'yogic way of living' को आधार रखकर लोगों ने इतने विचित्र आयाम सामने रखे हैं कि योग के सही रूप के बारे में भ्रम पैदा कर दिया है। इस समय योग प्रचार और योग के नाम से होने वाला आसन अभ्यास एक फैशन के रूप में प्रचलित हो रहा है और योग का उपयोग शरीर की सुदृढ़ता और रोग-निवारण के लिए बहुत ही अधिकृत रूप में किया जा रहा है। क्या योग । शरीर तक ही मर्यादित है ? क्या योग रोग-निवारण के लिए ही विकसित हुआ होगा? योग के विषय में इतने भ्रम क्यों पैदा हुए ? योग के भिन्न-भिन्न आयाम कौन से हैं ? इस विषय पर कुछ विचार प्रस्तुत कर रहे हैं।
योग सम्बन्धी क्रमागत विचार पतंजलि के योग-सूत्रों में उपलब्ध हैं। योगदर्शन का षड्दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसके अतिरिक्त योग शब्द के साथ ध्वनित होने वाले बहुत सारे योग के ही आयाम अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व प्रस्थापित करने में सफल हुए हैं। आज हमें हठयोग, राजयोग, मंत्रयोग, लययोग के अतिरिक्त कर्मयोग, भक्तियोग, क्रियायोग, कुंडलिनीयोग इत्यादि के नाम से विपुल मात्रा में साहित्य उपलब्ध है और श्रद्धा तथा भक्ति के -साथ इसका प्रचार करने वाले तथा पालन करने वाले भी मिलते हैं। इनके अतिरिक्त विदेशों में तो योग के नाम से ऐसी शब्दावली तैयार हो गयी है कि भारतीय योग परम्परा के प्रेमियों को भी संभ्रम और आश्चर्य होता है। उदाहरण के लिए योग के साथ जोड़े गये कुछ शब्द इस प्रकार हैं-Centre for Applied Yoga, Integral Yoga Centre, Kripalu Yoga Centre, Shri Gurudev Siddha Yoga Ashram, Rajayoga Centre, Sodhana Yoga Centre, Santosh Yoga Centre, Shanti Studio of Yoga, Yoga Gestalt Studio, Yoga Synthesis : Inner Awareness, Yoga Theraphy Centre, Integral Yoga Institute, Christa Nomdo Ashram for Yoga and Meditation, The American Institute of Yoga, International School of Yoga and Vedanta Philosophy, Temple of Kriya Yoga, Babaji Yoga Sangam, East-West Yoga Centre, The Yoga Academic Foundation, Yoga Seminary of New York, Agniyogo Society, Yoga Guild of America, Light of Yoga Society, Yoga and Health Centre, Yogananda Ashram Society, Yoga Fitness Centre etc.
पतंजलि ने अपने सूत्रों में "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" इस प्रकार योग की परिभाषा दी है। भाष्यकार व्यास ने "योगः समाधिः" ऐसी व्याख्या की है । विज्ञानभिक्षु ने अपने ग्रन्थ योगसारसंग्रह में योग की परिभाषा “सम्यक् प्रज्ञायते" इस प्रकार की है। याज्ञवल्क्य ने योग की परिभाषा "संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्मपरमात्मनो" इन शब्दों में
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