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भी पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : अष्टम खण्ड
एक राजकुमारी, युग की बर्बर प्रथा के चक्कों में पिस कर दासी बनी और किराने की भांति बाजार में बिकी। पर भगवान महावीर ने उसी दासी रूपा चन्दना की आत्मा में अमर सौन्दर्य जगाया, आत्म-साधना का शंख फंका, दिव्यता और भव्यता प्रदान की। बाजार में बिकने वाली नारी को इतना ऊँचा उठाया कि एक दिन भारत के समस्त निर्ग्रन्थ-श्रमणी वर्ग की अधिशासिका बनी। हजारों राजरानियाँ, राजकुमारियाँ, श्रेष्ठी कुमारियां दीक्षित होकर उसके चरणों में आत्म-साधना करने लगी। चन्दनबाला का साहस, शौर्य और प्रखर साधना नारी के गौरव में चार चांद लगाने वाला महाकाव्य है।
" सीता, अंजना, दमयन्ती, चेलना, सुभद्रा, मदनरेखा आदि सैकड़ों दिव्य नाम हैं नारी के यशोमय स्वरूप के, गरिमा मंडित इतिहास के । नारी में सुकुमारता है तो शौर्य भी है, सरलता है तो चतुरता भी है। कोमलता है तो साहस भी है। वत्सलता है तो दृढ़ मनोबल और उग्र तपश्चरण की अद्भुत क्षमता भी है।
जैन इतिहास में नारी के सर्वांग सुन्दर दिव्य-भव्य तेजोमय स्वरूप का दर्शन होता है। इसीलिए आज हर श्रद्धालु प्रात: उठकर महान् सोलह सतियों का नाम स्मरण कर अपना दिवस धन्य समझता है। जैन संस्कृति में नारी, नारी रूप में नहीं, किन्तु त्याग, तपश्चरण, शील, सहिष्णुता और आत्मलीनता की एक प्रतीक रूप में पूजी गई है आज भी पूजी जाती है और युग-युग तक पूजा पाती रहेगी।
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