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________________ अतीत की कुछ स्थानकवासी आर्याएँ -भंवरलाल नाहटा (बीकानेर) भगवान महावीर ने स्त्री-जाति की तत्कालीन दुरवस्था देखकर उन्हें मोक्ष-मार्ग की अधिकारिणी बनाया और चतुर्विध संघ में साध्वी और श्राविका को पुरुषों के समकक्ष स्थान दिया । गत ढाई हजार वर्षों में लाखों महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उन्नत दशा प्राप्त की। भगवान महावीर के समय में ही उनसे छत्तीस हजार साध्वियों ने दीक्षा ली। सती चन्दनवाला, मृगावती आदि अनेकों ने केवलज्ञान पाकर मुक्ति प्राप्त की। उनके बाद भी अगणित तेजस्वी साध्वियों ने जैन संघ के महान् धुरंधर आचार्यों को जिनशासन सेवा में समर्पित करने का महान् कार्य किया । आर्य रक्षित को वज्रस्वामी से पूर्वो का अभ्यास करने के लिए उनकी धर्म-प्राण माता ने ही प्रेरित कर भगवती दीक्षा दिलाई थी। याकिनी महत्तरा के प्रताप से ही हरिभद्रसूरि जैसे युगप्रधान ज्योतिर्धर जिनशासन की सेवा करने में भाग्यशाली हुए। श्री जिनदत्तसूरि जैसे महान् आचार्य, युगप्रधान पुरुष का धर्मदेवोपाध्याय के पास दीक्षित कराने में भी साध्वीजी का ही महान् हाथ था। उदाहरणों की कमी नहीं, वास्तव में जैन संघ पर साध्वियों का महान् उपकार है। उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर धर्म प्रचार किया, जैन संघ के भावी स्तम्भों की जननी महिलाओं में धार्मिक संस्कार भरे। जैन संघ के उद्धार, तपश्चर्या, धार्मिक अनुष्ठानों में साध्वियों की देन स्वर्णाक्षरों में अंकित करने योग्य है। आज भी जैन संघ में साध्वियाँ पर्याप्त संख्या में हैं; वे विदुषी, प्रवचनकार और साहित्यकार भी हैं। जैन समाज के वर्तमान स्वरूप में उनका गौरवपूर्ण स्थान है। आधुनिक युग में जैन साध्वियों के इस बन्द पृष्ठ को खोलकर जनता के समक्ष रखना आवश्यक है, अतः उनके इतिहास पर प्रकाश डालने के लिए मेरे काकाजी अगरचन्दजी के कई लेख प्रकाशित हुए हैं। गत तीन-चार सौ वर्षों में स्थानकवासी समाज का उदय हुआ और उसमें भी अनेक साध्वियां अतीत में हुई जिनके ज्ञानपक्ष पर प्रकाश डालने वाली कोई सामग्री प्राप्त नहीं है, पर त्याग-तपश्चर्यादि क्रियापक्ष पर प्रकाश डालने वाली अनेक कृतियाँ विविध ज्ञान भण्डारों व हमारे संग्रह में विद्यमान हैं । सन् १९६६ में मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन ब्यावर से अगरचन्दजी के सम्पादकत्व में ऐतिहासिक काव्य-संग्रह प्रकाशित हुआ, उसमें भी पाँच कृतियाँ साध्वियों से सम्बन्धित हैं। हमारे संग्रह में और भी कई कृतियाँ अप्रकाशित हैं, उन सब का सक्षिप्त सार जनता के समक्ष रखा जाना आवश्यक समझकर यह लेख लिखा जा रहा है। (१) 'काव्य संग्रह' में मूलांजी की सज्झाय, मयांजी का संथारा, वसंतोजी का संथारा, चलरूजी की सज्झाय और सती पदमण बाई सम्बन्धी काव्य छपे हैं। उनके संक्षिप्त सार के साथ-साथ अप्रकाशित कृतियों में से सती हस्तुजी, सती अमरांजी, सती मयाकुँवरजी, सती प्रेमाजी और सती गोरांजी (अपूर्ण) का परिचय भी यथा प्राप्त संक्षेप में दिया जा रहा है। एक बात स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ये सब कृतियाँ न तो किसी साक्षर की रचना है और न किसी विद्वान की ही लिपि की हुई है, अतः उनमें पद-पद पर त्रुटियों, अशुद्धियों की भरमार है, अतः उनसे सार-ग्रहण कर ही जनता के समक्ष रखना उपयुक्त है। हमें इनकी भाषा या काव्य-सौष्ठव पर लक्ष न देकर केवल रचनाकार की तपस्विनियों के प्रति अभिव्यक्त भक्ति पर ही ध्यान देकर ऐतिहासिक तथ्य ग्रहण करना है। स्थानकवासी समाज की ऐतिहासिक सामग्री बहुत ही कम प्रकाश में आई है । उसको संग्रहीत कर प्रकाशित करने पर ही उसका इतिहास लिखा जा सकेगा। विनयचन्द ज्ञान भण्डार, जयमल ज्ञान भण्डार, अमर जैन ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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