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युगप्रवर्तक क्रांतिकारी आचार्यश्री अमरसिंहजी महाराज : व्यक्तित्व और कृतित्व
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के मारफत सन् १७६७ मे बादशाह से मुलाकात की। बादशाह भण्डारी जी को लेकर अजमेर से लाहौर होते हुए देहली पहुँचे। उस समय आचार्यप्रवर अमरसिंहजी महाराज के प्रवचन-कला की प्रशंसा भण्डारी खींवसी जी ने सुनी। वे पूज्यश्री के प्रवचन श्रवण हेतु पहुँचे। पूज्यश्री के प्रभावोत्पादक प्रवचनों को सुनकर खींवसी जी अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने श्रावकधर्म को ग्रहण किया। वे प्रतिदिन नियमित रूप से प्रवचन श्रवण करने के लिए उपस्थित होते । विविध विषयों पर आचार्यप्रवर से वे विचार-चर्चा भी करते ।
बादशाह बहादुरशाह की अनेक लड़कियां थीं। एक कन्या जो अविवाहिता थी वह गर्भवती हो गयी। जब बादशाह को यह सूचना प्राप्त हुई तब वे क्रोध से आग-बबूला हो उठे। उनकी आँखें क्रोध से अंगारे की तरह लाल हो गयीं । उन्होंने कहा-यह लड़की कुल को कलंक लगाने वाली है। शाही कुल में इस प्रकार की लड़कियों की आवश्यकता नहीं, मैं ऐसी लड़कियों का मुंह देखना भी पाप समझता हूँ। अतः इसे नंगी तलवार के झटके से खतम कर दो ताकि अन्य को भी ज्ञात हो सके कि दुराचार का सेवन कितना भयावह है। भण्डारी खींवसी ने जब बादशाह की यह आज्ञा सुनी तो वे काँप उठे। उन्होंने बादशाह से निवेदन किया-हुजूर, पहले गहराई से जाँच कीजिए, फिर इन्साफ कीजिए । किन्तु आवेश के कारण बादशाह ने एक भी बात न सुनी। खींवसी जी गिड़गिड़ाते रहे कि मनुष्य मात्र भूल का पात्र है, उसे एक बार क्षमा कर आप विराट् हृदय का परिचय दीजिए, किन्तु बादशाह किसी भी स्थिति में अपने हुकुम को पुनः वापिस लेना नहीं चाहता था । खींवसीजी भण्डारी कन्या को मौत के घाट उतारने की कल्पना से सिहर उठे । मनःशान्ति के लिए वे आचार्यश्री के पास पहुँचे। आचार्यश्री ने उनके उदास और खिन्न चेहरे को देखकर पूछा-भण्डारीजी ! आज आपका मुखकमल मुरझाया हुआ क्यों है ? आप जब भी मेरे पास आते हैं उस समय आपका चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिला रहता है। भण्डारीजी अति गोपनीय राजकीय बात को आचार्यश्री से निवेदन करना नहीं चाहते थे । उन्होंने बात को टालने की दृष्टि से कहा-गुरुदेव ! शासन की गोपनीय बातें हैं। यह आपसे कैसे निवेदन करूं। कई समस्याएँ आती हैं, जब उनका समाधान नहीं होता है तो मन जरा खिन्न हो जाता है।
___ आचार्यश्री ने एक क्षण चिन्तन किया और मुस्कराते हुए कहा-भण्डारीजी, आप भले ही मेरे से बात छिपायें, किन्तु मैं आपके अन्तर्मन की व्यथा समझ गया हूँ। बादशाह की क्वारी पुत्री को जो गर्भ रहा है और उसे मरवाने के लिए बादशाह ने आज्ञा प्रदान की है, उसी के कारण आपका मन म्लान है । क्या मेरा कथन सत्य है न ?' .
अपने मन की बात आचार्यश्री कैसे जान गये यह बात भण्डारी जी के मन में आश्चर्य पैदा कर रही थी। उन्होंने निवेदन किया-भगवन्, आपको मेरे मन की बात का परिज्ञान कैसे हुआ? आप तो अन्तर्यामी हैं। कृपा कर यह बताइये कि उस बालिका के प्राण किस प्रकार बच सकते हैं ?
आचार्यप्रवर ने कहा--भण्डारी जी, स्थानाङ्गसूत्र में स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई भी वह पाँच कारणों से गर्भ धारण करती है, ऐसा उल्लेख है । वे कारण हैं
(१) अनावृत तथा दुनिषण्ण-पुरुष वीर्य से संसृष्ट स्थान को गुह्य प्रदेश से आक्रान्त कर बैठी हुई स्त्री के योनि-देश में शुक्र-पुद्गलों का आकर्षण होने पर,
(२) शुक्र-पुद्गलों से संसृष्ट वस्त्र के योनि-देश में अनुप्रविष्ट हो जाने पर, (३) पुत्रार्थिनी होकर स्वयं अपने ही हाथों से शुक्र-पुद्गलों को योनि-देश में अनुप्रविष्ट कर देने पर, (४) दूसरों के द्वारा शुक्र-पुद्गलों के योनि-देश में अनुप्रविष्ट किए जाने पर, (५) नदी, तालाब आदि में स्नान करती हुई के योनि-देश में शुक्र-पुदगलों के अनुप्रविष्ट हो जाने पर। इन पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई भी गर्भ को धारण कर सकती है ।
सारांश यह है कि पुरुष के वीर्य-पुद्गलों का स्त्री-योनि में समाविष्ट होने से गर्भ धारण करने की बात कही गयी है । बिना वीर्य पुदगलों के गर्भ धारण नहीं हो सकता। आधुनिक युग में कृत्रिम गर्भाधान की जो प्रणाली प्रचलित है इसके साथ इसकी तुलना की जा सकती है। सांड या पाड़े के वीर्य पुद्गलों को निकालकर रासायनिक विधि से सुरक्षित रखते हैं या गाय और भैंस की योनि से उसके शरीर में वे पुद्गल प्रवेश कराये जाते हैं और गर्भकाल पूर्ण होने पर उनके बच्चे उत्पन्न होते हैं । अमेरिका में 'टेस्ट-ट्यूब बेबीज' की शोध की गयी है। उसमें पुरुष के वीर्य-पुद्गलों को काँच की नली में उचित रासायनों के साथ रखा जाता है और उससे महिलाएँ कृत्रिम गर्भधारण करती हैं।
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