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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : अष्टम खण्ड
प्रभावित हुए और मां से उसे प्राप्त किया। दीक्षा के पश्चात् उनका नाम सोमचन्द्र रखा गया। गम्भीर विद्वत्ता को देखकर २१ वर्ष की आयु में आचार्य पद प्रदान दिया गया और सोमचन्द्र के स्थान पर हेमचन्द्र नाम रखा गया। आपने गुर्जरनरेश सिद्धराज जयसिंह जैसे विद्यारसिक नरेश को अपनी प्रतिभा से चमत्कृत किया और उस शव नरेश को परमाहत बनाया। आपने शब्दानुशासन, संस्कृतद्वयाश्रय, प्राकृतद्वयाश्रय, अभिधान चिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टु, निघण्टुशेष, देशीनाममाला, काव्यानुशासन, योगशास्त्र, प्रमाणमीमांसा, आदि शताधिक, ग्रंथों की रचना की। आपने आगमिक, दार्शनिक, साहित्यिक, सामाजिक और राजनीतिक सभी विषयों पर महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे । वस्तुतः आप जैन जगत् के व्यास हैं।
आचार्य मलयगिरि-ये उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी थे। इनकी टीकाओं में प्रकाड पाण्डित्य स्पष्ट रूप से झलकता है। विषय की गहनता के साथ भाषा की प्रांजलता, शैली की लालित्यता के दर्शन होते हैं। आगम साहित्य के साथ ही गणित, दर्शन और कर्मसिद्धान्त के भी ये निष्णात थे। वर्तमान में उनके बीस ग्रंथ उपलब्ध होते हैं। इनके अतिरिक्त भी उनके ग्रंथ थे। आगम के गंभीर रहस्यों को तर्कपूर्ण शैली में उपस्थित करने की अद्भुत कला इनमें थी। मुनिश्री पुण्यविजयजी के शब्दों में कहें तो व्याख्याकारों में उनका स्थान सर्वोत्कृष्ट है।
___ इस तरह प्रबल प्रतिभा के धनी अनेक मूर्धन्य आचार्य हुए हैं जिन्होंने विपुल साहित्य का सृजन कर सरस्वती के भण्डार को भरा है किन्तु विस्तारभय से हम उन सभी का यहाँ परिचय नहीं दे रहे हैं। सन्दर्भ एवं सन्दर्भ-स्थल । १ विशेष परिचय के लिए देखिए लेखक का ऋषभदेव एक परिशीलनः ग्रन्थ । २ विशेष परिचय के लिए देखिए लेखक का "भगवान अरिष्टनेमि और कर्म योगी श्रीकृष्ण" ग्रन्थ । ३ विशेष परिचय के लिए देखिए लेखक का ग्रन्थ "भगवान पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्ययन"। ४ विशेष परिचय के लिए देखिए लेखक का ग्रन्थ "भगवान महावीर : एक अनुशीलन"। ५ आवश्यक नियुक्ति ६४३ । ६ वही. गाथा ६४७-४८ । ७ भगवती १-१-८ । ८ (क) कल्प सूत्रार्थ प्रबेधिनी (ख) गणधरवाद की भूमिका, दलसुख मालवणिवा पृ० ६६ । है भगवान महावीर : एक अनुशीलन । १० (क) आवश्यक नियुक्ति ६५५ । (ख) आवश्यक मलयगिरि-३३६ । ११ (क) कल्प सूत्र चुणि २०१ । (ख) आवश्यक नियुक्ति गाथा ६५८ ।
आवश्यक नियुक्ति ६५५ । मण परमोहि पुलाए आहार खवग उवसमेकप्पे ।
संजमतिग केवल सिज्झणा य जंबुम्मि वुच्छिण्णा-॥ १४ दाशाश्रुत स्कंध चूणि । १५ (क) गुर्वावली-मुनिरत्न सूरि। (ख) कल्पसूत्र कल्पार्थ बोधिनी टीका पु० २०८ । १६ आवश्यक चूर्णि-भाग २, पृ० १८७ । १७ तित्थोगालिय ८०/१/२/ १८ पट्टावली पराग : मुनि कल्याणविजय पृ० ५१ । १९ जैन परम्परा नो इतिहास भाग १. पृ० १७५-७६ । २० बृहत्कल्प भाष्य १/५० ३२७५ से ३२८६ । २१ पज्जोसमणाकप्पणिज्जुत्ती पृ० ८६ ।
(क) श्री निशीथ चूणि० उ० १० ।
(ख) भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति । २२ (क) आवश्यक चूणि प्रथम भाग-पन्ना ३६० । (ख) आवश्यक हरिभद्रयावृत्ति टीका प्रथम भाग-पन्ना २८६ ।
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