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किया । साथ ही अपने सुशिष्यों को अध्ययन की दिशा में प्रगति करने और सदा सर्वदा संयम साधना में सुदृढ़ रहने की उनकी जागृति को देखकर मेरा मस्तिष्क नत हो गया और मेरे हृदय तंत्री के तार झनझना उठें। आपका स्वयं का जीवन पवित्र हैं और आपका अनुशासन अनुकर णीय है ।
आपश्री के प्रवचन अत्यन्त प्रभावक होते हैं। उसमें आगमों के गम्भीर रहस्य, दार्शनिक चिन्तन, सामाजिक
परम आल्हाद का विषय है कि उपाध्याय पंडित प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी की दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के सुनहरे प्रसंग पर एक विराट्काय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है । उस ग्रन्थ में मैं भी श्रद्धा के सुमन समर्पित करू, यह अन्तर्हृदय की आवाज है। मेरा पूज्य गुरुदेव के साथ लम्बा परिचय नहीं रहा, किन्तु स्वल्प परिचय ने भी मेरे हृदय पर एक गहरी छाप अंकित की है।
जिनके जीवन में सदगुणों के सुमनों की महक गमक रही हो और जिनका जीवन अध्यात्म के रस से छलक रहा हो, जो स्वयं सदा अध्यात्म की मस्ती में झूमता हो और अपने सन्निकट आने वालों को भी ऐसी मस्ती प्रदान करता हो, उस विराट आत्मा को कौन भूल सकता है ? मैंने अनुभव किया कि पूज्य गुरुदेव के जीवन- पुष्कर में से प्रतिपल-प्रतिक्षण सहृदयता, सौम्यता, उदारता, सात्विकता सरलता का निर्झर कलकल छलछल का मधुर निनाद करता हुआ प्रवाहित होता है और वह भक्तों के पाप-ताप एवं सन्ताप को मिटाकर आध्यात्मिक सरसब्जता प्रदान करता है । उनके सन्निकट बैठने पर सागर की गम्भीरता,
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शासन की जगमगाती ज्योति
महासती हीराबाई स्वामी
प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंन
इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों पर उन्हीं महापुरुषों के नाम अंकित है जिनका जीवन यशस्वी, वर्चस्वी और तेजस्वी है । यों प्रतिपल-प्रतिक्षण सैकड़ों व्यक्ति जन्म लेते हैं, किन्तु उन्हें कोई स्मरण नहीं करता। वे कब जन्मे और कब मरे इसकी भी किसी को स्मृति नहीं होती ।
पूज्य उपाध्याय पुष्कर मुनिजी महाराज जिनका
विकट समस्याओं के समाधान सभी कुछ होते हैं । अतः उनका श्रोताओं के हृदय पर गहरा असर होता है ।
आपश्री के दीक्षा स्वर्ण जयन्ति के पावन प्रसंग पर अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, यह अभिनन्दन ग्रन्थ ज्ञान की वृद्धि करने वाला, तप त्याग और साधना की प्रेरणा देने वाला बनेगा, क्योंकि इसके संपादक देवेन्द्र मुनिजी हैं । अतः मैं हार्दिक श्रद्धा अभिव्यक्त करती हूँ और शासनदेव से यह प्रार्थना करती हूँ कि आपश्री पूर्ण स्वस्थ रहें और जैन-शासन की अत्यधिक प्रभावना करें ।
चन्द्रमा की शीतलता, और आकाश की विशालता के संदर्शन होते हैं ।
सन्त जीवन में यदि सद्गुणों का वसन्त न खिले तो अन्य किस जीवन में खिलेगा ? जिनेश्वर की आज्ञा के अनुसार अपने जीवन को चलाना आपकी मुख्य विशेषता है; वीतराग वाणी के प्रति आपकी गहरी निष्ठा है । आपके प्रवचनों में इस बात पर अधिक बल दिया जाता है । आपका शारीरिक सौन्दर्य गणधर गौतम की तरह चित्ताकर्षक है; मन मोहक है और उससे भी अधिक सुन्दर है आपका अन्तर्मानस । आप जीवन का प्रत्येक क्षण आत्मसाधना, तपः आराधना एवं सर्वजनहिताय, सर्वजन सुखाय समर्पित करते हैं। मेरी हार्दिक मंगलकामना है कि आप पूर्ण स्वस्थ रहकर जैन शासन की प्रगति में प्रेरणा रूप बनकर अनेक भूले-भटके जीवों को पथ-प्रदर्शन करें। आप शासन की जगमगाती ज्योति हैं, आपके अनुभव के दिव्य आलोक में भावुक भक्तगण साधना के पथ पर आगे बढ़े, चिरकाल तक स्नेह की सरस वर्षा करते रहें, यही अभ्यर्थना है !
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प्रभावकारी और चमत्कारी व्यक्तित्व महासती प्राणकुंवरबाई (गोण्डल सम्प्रदाय)
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जीवन संयम के दिव्य व भव्य अलंकारों से अलंकृत हैं, ज्ञान की अलौकिक आभा से जिनका जीवन दीप्त है और दिव्य व भव्य प्रेम के परिमल से जो विश्व को सुगन्धित बना रहे हैं, उनके सम्बन्ध में लिखते हुए हृदय आनन्द से
झूम रहा है।
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इस युगस्रष्टा सन्त सम्राट का समागम सर्वप्रथम
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