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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : सप्तम खण्ड
डा० एच० डी० सांकलिया ने बौद्ध साहित्य के आधार पर 'बुद्धिस्ट एजुकेशन' लिखी। बी० सी० ला आदि ने भी अपनी पुस्तकों में इस विषय को लिया है।
सन् १९७० में पाली इन्स्टीट्यूट नालन्दा में त्रिपिटक के आधार पर 'बौद्ध शिक्षा विषय' पर डा० नन्दकिशोर उपाध्याय ने एक शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया।
कुछ विद्वानों का ध्यान जैन वाङमय की ओर भी आकृष्ट हुआ । डाक्टर डी० सी० दासगुप्ता ने 'जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' पर कलकत्ता विश्वविद्यालय में दस व्याख्यान दिये जो १९४२ में 'जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' के नाम से प्रकाशित हुए। इसमें प्राचीन जैन आगमों में उपलब्ध सामग्री के आधार पर भारतीय शिक्षा पद्धति का विवेचन किया गया है।
डाक्टर एच० आर० कापड़िया का एक विस्तृत निबन्ध 'जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' बम्बई विश्वविद्यालय के जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसमें जैन वाङमय के आधार पर प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति का विश्लेषण किया गया है। डाक्टर एन० ए० देशपाण्डे का शोध प्रबन्ध 'जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' बम्बई विश्वविद्यालय की पी-एच. डी० उपाधि के लिए प्रस्तुत हुआ । सन् १९७४ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में मैंने अपना लघु शोधप्रबन्ध 'जैन शिक्षा पद्धति का विश्लेषणात्मक अध्ययन' शीर्षक प्रस्तुत किया था। १९७६ में पटना विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में पी एच० डी० उपाधि के लिए श्री निशानन्द शर्मा का 'जैन वाङमय में शिक्षा तत्त्व' शीर्षक शोधप्रबन्ध प्रस्तुत हुआ था जिस पर उन्हें उक्त उपाधि भी प्राप्त हुई। जैन वाङमय पर लिखे गये कुछ अन्य प्रबन्धों में भी जन वाङमय में उपलब्ध प्राचीन भारतीय शिक्षा सम्बन्धी सामग्री का उपयोग किया गया है। इस दृष्टि से निम्नलिखित ग्रन्थ दृष्टव्य हैं :
(१) डा० जगदीशचन्द्र जैन : 'सोशल लाइफ इन ऐन्शियेण्ट इण्डिया एज डिपिक्टेड इन जैन केनोनिकल
लिटरेचर', एशिया पब्लिशिंग हाउस, बम्बई-१६।। (२) डा० गोकुलचन्द्र जैन : यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, सोहनलाल जैनधर्म प्रचारक समिति,
अमृतसर, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, १६६७ । (३) डा० जे० सी० सिकदर : स्टडीज इन पउमचरियम्, इन्स्टीट्यूट आफ प्राकृत जैनोलाजी एण्ड अहिंसा,
वैशाली १६७३। (४) डा० श्रीमती मधु सेन : ए कल्चरल स्टडी आफ निशीथ चूर्णि, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान,
वाराणसी। (५) डा० नेमिचन्द्र शास्त्री : आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी। (६) डा० प्रेमचन्द जैन 'सुमन' : कुवलयमाला का सांस्कृतिक अध्ययन, प्राकृत विद्यापीठ, वैशाली, . मुजफ्फरपुर (बिहार)।
कतिपय निबन्ध भी जैन शिक्षा पर विभिन्न सेमिनारों में पढ़े गये। १९७३ के अक्टूबर में उदयपुर विश्वविद्यालय में आयोजित सेमिनार में जैन शिक्षा पर भी दो निबन्ध पढ़े गये-डा0 हरीन्द्रभूषण जैन : जैन एजुकेशन इन ऐंशियेण्ट इण्डिया, प्रो० सी० एम० कर्णावत : एजुकेशन इन जैनिज्म ।
सन् १९७४ में जैन विश्वभारती, लाडन द्वारा दिल्ली में आयोजित सेमिनार में मैंने "जैन शिक्षा पद्धति" शीर्षक निबन्ध पढ़ा। १९७५ में प्रो० निर्मलकुमार बोस प्रतिष्ठान, वाराणसी द्वारा आयोजित सेमिनार में मैंने "जैन शिक्षा : उद्देश्य और विधियाँ' शीर्षक निबन्ध पढ़ा।
जैन शिक्षा पर अनुसन्धान कार्य करने के पूर्व इस सम्पूर्ण सामग्री का अवलोकन आवश्यक है।
हमारी यह धारणा है तथा तथ्यों के आधार पर इस बात की पुष्टि भी होती है कि प्राचीन भारत में शिक्षा की जो पद्धतियाँ प्रचलित थीं, उनमें दो पद्धतियाँ मुख्य थीं :
(१) वैदिक या ब्राह्मण शिक्षा पद्धति । (२) श्रमण या जैन शिक्षा पद्धति ।
इन दोनों शिक्षा पद्धतियों में कुछेक समानताएँ होते हुए भी मौलिक भेद थे जिनके कारण दोनों का स्वतन्त्र रूप से विकास होता रहा ।
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