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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
मारुतिराव डांगे की 'श्री पुष्करमुनि जी जीवन आणि विचार गंगा' एक सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसमें विविध छन्दों में उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी के जीवन और विचार पर गहराई से चिन्तन किया गया है । कवि की प्रताप पूर्ण प्रतिमा के सर्वत्र संदर्शन होते हैं ।
आचार्य प्रवर आनन्द ऋषिजी महाराज पं० प्रवर सिरेमल जी महाराज, पं० प्रवर विनयचन्द जी महाराज, देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री के लेख व पुस्तकें मराठी साहित्य में प्रकाशित हुई हैं। राजेन्द्र मुनि शास्त्री की 'भगवान 'महावीर जीवन आणि दर्शन' लघु कृति होने पर भी महावीर के जीवन-दर्शन को समझने में अत्यन्त उपयोगी है ।
सेठ हीराचन्द नेमीचन्द ने पुरातन संस्कृत ग्रन्थों के अनुवाद कार्य का भी शुभारंभ 'रत्नकरण्ड' से किया । मध्ययुगीन लेखकों ने जहाँ भावानुवाद की पद्धति अपनाई थी वहाँ आधुनिक अनुवादकों ने शब्दशः अनुवाद को महत्त्व दिया । महापुराण, आप्तमीमांसा आदि अनेक ग्रन्थों का अनुवाद कल्लाप्पा शास्त्री निटवे, कोल्हापुर ने प्रकाशित किया । अनुवाद ग्रन्थों की सूची काफी लम्बी है, जो विस्तारभय से नहीं दी जा रही है । कुछ अनुवादकों ने विस्तृत व्याख्या की शैली अपनाई । पं० जिनदास शास्त्री फडकुले की दशभक्ति और स्वयम्भूस्तोत्र की व्याख्याएं उल्लेखनीय हैं । आपने अन्य अनेक ग्रन्थों के अनुवाद किये हैं। आधुनिक समीक्षात्मक व्याख्या का सुन्दर उदाहरण श्री बाबगोंडा पाटील का रत्नकरण्ड का संस्करण है। पं० फडकुले की पद्यानुवाद में विशेष रुचि है । पद्यपुराण, आदिपुराण आदि का उन्होंने पद्य में अनुवाद किया है। दूसरे उल्लेखनीय पद्यानुवादक श्री मोतीचन्द गांधी 'अशा' हैं। कुन्दकुन्द, पूज्यपाद, योगीन्दु आदि आचार्यों के ग्रन्थों का आपने पद्य में अनुवाद किया है। हरिषेण कथाकोश, कुरल काव्य आदि का गद्य अनुवाद भी आपने किया है । हाल के कुछ वर्षों में पं० धन्यकुमार भोरे के समयसार और प्रवचनसार के अनुवाद उल्लेखनीय हैं ।
जैनेतरों और जैनधर्म के प्रारम्भिक जिज्ञासुओं के लिए सरल परिचय के रूप में कुछ ग्रन्थों की रचना हुई जिनमें श्री रावजी नेमचन्द शहा का जैन धर्मादर्श उल्लेखनीय है । पं० कैलाशचन्द्र का 'जैनधर्म' और डा० हीरालालजी का 'भारतीय संस्कृति में जैनधर्म' का योगदान भी मराठी में अनुवादित हुए हैं । बालकों के लिए क्रमबद्ध अध्ययन की दृष्टि से सेठ रावजी सखाराम दोशी के बालबोध जैनधर्म के चार भाग कई दशकों तक उपयुक्त सिद्ध हुए हैं । पाठ्य पुस्तकों के रूप में डाला, द्रव्यसंग्रह, रत्नकरण्ड, तस्वार्थसूत्र के कई मराठी संस्करण निकले हैं। बाल पाठकों के लिए जैन इतिहास की अनेक कथाएं श्री मगदूम की वीर ग्रन्थमाला, सांगली से प्रकाशित हुई । हाल के वर्षों में श्री सुमेर जैन, सोलापूर ने करकण्डु आदि अनेक कथाओं का ललित मराठी रूप प्रस्तुत किया है। जीवराज ग्रन्थमाला ने भी श्री अक्कोले की महामानव सुदर्शन, पराक्रमी वरांग आदि कथाएँ प्रकाशित की हैं। हमने कुवलयमाला कथा का मराठी साररूपान्तर किया जो सन्मति प्रकाशन, बाहुबली से प्रकाशित हुआ है । पुरातन कथाओं को काव्य के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। इस दिशा में श्री दत्तात्रय रणदिवे ने वर्तमान शताब्दी के प्रथम चरण में काफी ख्याति प्राप्त की आपकी गजकुमारचरित, कुलभूषण देशभूषणचरित आदि कविताएँ प्रकाशित हुई। आपने स्वतन्त्र कथाओं पर अनेक उपन्यास भी लिखे । विगत दो दशकों में श्री जयकुमार क्षीरसागर ने जीवन्धरचरित आदि काव्य ग्रन्थ लिखे हैं । कविता के माध्यम से धर्मतत्त्वों की चर्चा का एक उल्लेखनीय प्रयास सोलापूर की पंडिता सुमतिबाई शहा की 'आदिगीता' में मिलता है। नाटकों के रूप में भी कुछ कथाएं प्रस्तुत हुई है। इनमें श्री नेमचन्द चवडे रचित मुसीस मनोरमा, श्री गणपत चवडे रचित गर्वपरिहार आदि इस शताब्दी के प्रथम चरण में छपे थे। विगत दो दशकों में भी रत्नाची पारख (श्री सुमेर जैन ), शील सम्राज्ञी (श्री हेमचन्द्र जैन ) आदि नाटक प्रकाशित हुए हैं। गायन के लिए उपयोगी पदों की कई छोटी-छोटी पुस्तकें भी लिखी गई। इनमें 'रत्नत्रय मार्ग प्रदीप', 'जिन पद्मावती' (अनन्तराज पांगल), जैन भजनामृत पद्यावली (तात्यासाहब चोपडे ), जिनपद्य कुसुममाला (माणिकसावजी खंडारे), पद्यकुसुमावली (शांतिनाथ कटके) आदि उल्लेखनीय है।
आधुनिक मराठी जैन साहित्य का पूरा लेखा-जोखा तो श्रमसाध्य कार्य है, फिर भी हमने जहाँ तक संभव हो सका प्रमुख प्रवृत्तियों का परिचय देने का प्रयत्न किया है। पर यहाँ एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि मराठी साहित्य की श्री वृद्धि में जितना दिगम्बर परम्परा के विद्वानों का योगदान रहा है उसी तरह श्वेताम्बर परम्परा के मनीषियों का भी योग रहा है, पर मुझे श्वेताम्बर साहित्य के सम्बन्ध में विशेष परिज्ञान न होने से उनका मैं यहाँ पर परिचय नहीं दे सका हूँ अतः क्षमाप्रार्थी हूँ । इसी प्रकार पुरानी मराठी के लेखकों की भी पूरी गणना यहाँ नहीं की गई है छोटी-छोटी रचनाओं के लेखकों का उल्लेख छोड़ दिया गया है । आशा है कि इस सामान्य परिचय से जैन साहित्य के विशाल मराठी के योगदान की कुछ प्रतीति हो सकेगी ।
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