________________
हिन्वी जैन-काव्य में योगसाधना और रहस्यवाद
६५७
.
मोह पंक की थिति घटी हो, संशय शिशिर व्यतीत अध्यातम०॥४॥ शुभ दल पल्लव लहलहे हो, होहिं अशुभ पतझार । मलिन विषय रति मालती हो, विरति बेलि विस्तार अध्यातम०॥५॥ शशि विवेक निर्मल भयो हो, थिरता अमिय झकोर । फैली शक्ति सुचन्द्रिका हो, प्रमुदित नैन-चकोर ॥अध्यातम०॥६॥ सुरति अग्नि ज्वाला जगी हो, समकित भानु अमन्द । हृदयकमल विकसित भयो हो, प्रगट सुजश मकरन्द ॥अध्यातम०॥७॥ दिढ कषाय हिमगिर गले हो, नदी निर्जरा जोर । धार धारणा बह चली हो, शिवसागर मुख ओर ॥अध्यातम०॥८॥ वितथ वात प्रभुता मिटी हो, जग्यो जथारथ काज । जंगल भूमि सुहावनी हो, नप वसन्त के राज ||अध्यातम०॥६
-बनारसी विलास, अध्यातम-फाग, २-६, पृ०१५४ ५५ गो सुवर्ण दासी भवन, गज तुरंगे परधान । कुल कलत्र तिल भूमि रथ, ये पुनीत दशदान ।।
-वही, दसदान, १, पृ० १७७ ५६ वही, अध्यातम फाग, १८, पृ० १५५-१५६
महावीर जी अतिशय क्षेत्र का एक प्राचीन गुटका, साइज ८४६, पृ०१६०; हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि,
पृ० १५६ ५७ अक्षर ब्रह्म खेल अति नीको खेलत ही हुलसावै॥
-हिन्दी पद संग्रह, पृ० ६२ ५८ आयो सहज बसन्त खेल सब होरी होरा ।।
उत बुधि दया छिमा बहुठाढी, इत जिय रतन सजे गुन जोरा। ज्ञान ध्यान डफ ताल बजत हैं, अनहद शब्द होत घनघोरा । धरम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुहूनें घोरा आयो॥२॥ परसन उत्तर भरि पिचकारी, छोरत दोनों करि करि जोरा । इतत कहैं नारि तुम काकी, उततै कहैं कोन को छोरा ॥३॥ आठ काठ अनुभव पावक में, जल बुझ शांत भई सब ओरा । द्यानत शिव आनन्द चन्द छबि, देखें सज्जन नैन चकोरा ॥४॥
- हिन्दी पद संग्रह, पृ० ११६ ५६ हिन्दी पद संग्रह, पृ० १२१ ६० वही, पृ० १४६ ६१ हिन्दी पद संग्रह, पृ० १५८ ६२ इह विधि खेलिये होरी हो चतुर नर ।
निज परनति संगि लेहु सुहागिन, अरु फुनि सुमति किसोरी हो ॥१॥ ग्यान मइ जल सो भरि भरि के,
सबद पिचरिका छोरी।
मान अबीर उड़ावो, राग गुलाल की झोरी हो ॥३॥
-हिन्दी पद संग्रह, पृ० १७७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org