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________________ जैन ज्योतिष साहित्य : एक चिन्तन ६२७ . --moniummmmmmmmmmmmmms-i+++mmmmmmomsonamurtime ०० उपाध्याय यशोविजयजी 'फलाफल विषयक प्रश्नपत्र' ग्रन्थ के रचयिता माने जाते हैं । इसमें चार चक्र हैं और प्रत्येक चक्र में सात कोष्ठक हैं । मध्य के चारों कोष्ठकों में ओं, ह्रीं श्रीं अर्ह नमः उकित किया गया है । आसपास के कोष्ठकों को गिनने से चौबीस कोष्ठक बनते हैं । जिनमें चौबीस तीर्थंकरों के नाम दिये गये हैं। चौबीस कोष्ठकों में कार्य की सिद्धि, मेघवृष्टि, देश का सौख्य, स्थानसुख, ग्रामांतर, व्यवहार, व्यापार, ब्याजदान, भय, चतुष्पाद, सेवा, सेवक, धारणा, बाधारुधा, पुररोध, कन्यादान, वर, जयाजय, मन्त्रौषधि, राज्यप्राप्ति, अर्थचिन्तन, सन्तान, आगंतुक तथा गतवस्तु को लेकर प्रश्न किये गये हैं। उपाध्याय मेघविजय जी के उदयदीपिका, प्रश्नसुग्दरी, वर्षप्रबोध, आदि ग्रन्थ मिलते हैं जिसमें ज्योतिष सम्बन्धी चर्चाएं हैं। मुनि मेघरत्न ने 'उस्तरलाबयंत्र' की रचना की है जिसमें अक्षांश और रेखांश का ज्ञान प्राप्त होता है तथा नतांश और उन्नतांश का वेध करने में भी इसका उपयोग होता है। इसकी प्रति अनूपसंस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर में हैं । श्री अगरचन्द जी नाहटा ने उस्तरलावयंत्र सम्बन्धी एक महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थ से एक निबन्ध भी लिखा है। 'ज्योतिष्-रत्नाकर' के रचयिता मुनि महिमोदय हैं जो गणित और फलित दोनों प्रकार की ज्योतिषविद्या के श्रेष्ठ ज्ञाता थे। प्रस्तुत ग्रन्थ में संहिता, मुहूर्त और जातक पर विचार-चर्चा की गयी है। ग्रन्थ लघु होते हुए भी उपयोगी है। इनकी दूसरी रचना "पंचांगानयन-विधि" नामक ग्रन्थ मिलता है जिसमें पंचांग के गणित में सहयोग प्राप्त होता है । ये दोनों ग्रन्थ अब तक अप्रकाशित हैं। वाघजी मुनि का 'तिथि सारिणी' नामक श्रेष्ठ ग्रन्थ है जिसकी प्रति लिमडी के जैन भण्डार में है । मुनि यशस्वतसागर का 'यशोराज्य-पद्धति" ग्रन्थ मिलता है जिसके पूर्वाद्ध में जन्मकुण्डली की रचना पर चिन्तन किया गया है और उत्तरार्द्ध में जातक पद्धति की दृष्टि से संक्षिप्त फल प्रतिपादित किया गया है। यह ग्रन्थ भी अप्रकाशित है। आचार्य हेमप्रम का "त्र्यैलोक्य प्रकाश' ज्योतिष सम्बन्धी एक श्रेष्ठ रचना है। प्राकृत भाषा में एक अज्ञात लेखक की 'जोइसहिर' नामक रचना मिलती है । जिसमें शुभाशुभ तिथि, ग्रह की सबलता, शुम घड़ियाँ, दिनशुद्धि, स्वर ज्ञान, दिशाशूल, शुभाशुभयोग, व्रत आदि ग्रहण करने का मुहूर्त आदि का वर्णन है। इसी नाम से मुनि हरिकलश की भी रचना मिलती है जिसकी भाषा राजस्थानी है और इसमें नौ सौ दोहे हैं। 'पंचांग तत्त्व' 'पंचांग तिथिविवरण' 'पंचांगदीपिका', 'पंचांग पत्र विचार' आदि भी जैन मुनियों की रचनाएँ हैं किन्तु उनके लेखकों के नामों का अता-पता विज्ञों को नहीं लगा है। 'सुमतिहर्ष' ने 'जातक पद्धति' जो श्रीपति की रचना थी उस पर वृत्ति लिखी है । उन्होंने 'ताजिकसार' 'करण कुतुहल' 'होरा मकरन्द' आदि ग्रन्थों पर भी टीकाएँ निर्माण की हैं। महादेवीसारणी टीका, विवाह पटल-बालावबोध, ग्रहलाघव टीका, चन्द्रार्की टीका, षट्पंचाशिका टीका, भुवनदीपक टीका, चमत्कार चिन्तामणि टीका, होरामकरंद टीका, बसन्तराज शाकुन टीका, आदि अनके ग्रन्थों जिनमें ज्योतिष के सम्बन्ध में विभिन्न दृष्टियों से चिन्तन किया गया है जो जैन मुनियों की व जैन विज्ञों की ज्योतिष के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण देन है। अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमितिगणित, प्रतिभागणित, पंचांग निर्माण गणित, जन्म-पत्र निर्माण गणित, प्रमृति गणित ज्योतिष के अंगों के साथ ही होराशास्त्र, मुहूर्त, सामुद्रिकशास्त्र, प्रश्नशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, निमित्तशास्त्र, रमलशास्त्र, पासा-केवली आदि फलित अंगों पर विशद रूप से विवेचन किया है । शोधार्थी विज्ञों को जैन ज्योतिष साहित्य के सम्बन्ध में पांच सौ से भी अधिक ग्रन्थ उपलब्ध हो चुके हैं। स्पष्ट है कि आगम साहित्य में जिस ज्योतिष के सम्बन्ध में संक्षेप से चिन्तन किया गया उस पर परवर्ती आचार्यों और लेखकों ने अपनी शैली से विस्तार से निरूपण किया। यह सम्पूर्ण साहित्य इतना विराट् है कि उन सभी पर विस्तार से विश्लेषण किया जाय तो एक बृहद्काय ज्योतिष ग्रन्थ बन सकता है। किन्तु हमने यहाँ अति संक्षेप में ही अपने विचार व्यक्त किये हैं जिससे प्रबुद्ध पाठकों को परिज्ञात हो सके कि जैन मनीषियों ने भी ज्योतिषविद्या के सम्बन्ध में कितना कार्य किया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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