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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्थ : षष्ठम खण्ड
की दृष्टि से प्रस्तुत विषय अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यहाँ पर यह प्रश्न उपस्थित किया गया है कि जब अर्धपुरुषप्रमाण छाया हो उस समय कितना दिन व्यतीत हुआ और कितना दिन अवशेष रहा ? उत्तर देते हुए कहा है-ऐसी छाया की स्थिति में दिनमान का तृतीयांश व्यतीत हुआ समझना चाहिए। यदि मध्याह्न के पूर्व अर्षपुरुषप्रमाण छाया हो तो दिन का तृतीय भाग गत और दो-तिहाई भाग अवशेष समझना चाहिए और मध्याह्न के पश्चात् अर्धपुरुषप्रमाण छाया हो तो दो-तिहाई भाग प्रमाण दिनगत और एक भाग प्रमाण दिन अवशेष समझना चाहिए। पुरुषप्रमाण छाया होने पर दिन का चौथाई भागगत और तीन चौथाई भाग अवशेष समझना चाहिए। और डेढ़ पुरुषप्रमाण छाया होने पर दिन का पंचम भाग गत और ३ भाग अवशेष दिन समझना चाहिए।
प्रस्तुत आगम में गोल, त्रिकोण, लम्बी व चतुष्कोण वस्तुओं की छाया पर से दिनमान का आनयन का प्रतिपादन किया गया है । चन्द्रमा के साथ तीस मुहूर्त तक योग करने वाले श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, पूर्वाषाढ़ा इन पन्द्रह नक्षत्रों का वर्णन है । पैन्तालीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करने वाले उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, उत्तराषाढ़ा ये छह नक्षत्र हैं। और पन्द्रह मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग करने वाले शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा ये छह नक्षत्र हैं । चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्र को अपने आप प्रकाशमान बताया है। उसकी अभिवृद्धि और घटने के कारण पर भी प्रकाश डाला है। और साथ ही पृथ्वी से सूर्यादि ग्रहों की ऊँचाई कितनी है, इस पर चिन्तन किया गया है। ये दोनों आगम ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं ।
स्थानांग और समवायांग में विविध विषयों का वर्णन है। उस वर्णन में चन्द्रमा के साथ ही सर्शयोग करने वाले नक्षत्रों का भी उल्लेख किया गया है। आठ नक्षत्र कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा ये चन्द्र के साथ स्पर्शयोग करने वाले हैं। प्रस्तुत योग का फल तिथियों के अनुसार विभिन्न प्रकार का होता है । इसी तरह नक्षत्रों की विभिन्न संज्ञाएँ उत्तर, पश्चिम, दक्षिण पूर्व दिशा की ओर से चन्द्रमा के साथ योग करने वाले नक्षत्रों के नाम और उनके फल पर विस्तार से विश्लेषण किया गया है। स्थानांग में ८८ ग्रहों के नाम भी आये हैं । वे इस प्रकार हैं-अंगारक, काल, लोहिताक्ष, शनैश्चर, कनक, कनक-कनक, कनक-वितान, कनक-संतानक, सोमहित, आश्वासन, कज्जोवग, कर्वट, अयस्कर, दुंदुयन, शंख, शंखवर्ण, इन्द्राग्नि, धूमकेतु, हरि, पिंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति, राहु, अगस्त, मानवक्र, काश, स्पर्श, धुर, प्रमुख, विकट, विसन्धि, विमल, पपिल, जटिलक, अरुण, अगिल, काल, महाकाल, स्वस्तिक, सौवास्तिक, वर्द्धमान, पुष्पमानक, अंकुश, प्रलम्ब, नित्यलोक, नित्योदियत, स्वयंप्रभ, उसम, श्रेयंकर, प्रेयंकर, आयंकर, प्रभंकर, अपराजित, अरज, अशोक, विगतशोक, निर्मल, विमुख, वितत, वित्रस्त, विशाल, शाल, सुव्रत, अनिवर्तक, एकजटी, द्विजटी, करकरीक, राजगल, पुष्पकेतु एवं भावकेतु आदि ।
इसी तरह समवायांग में भी एक-एक चन्द्र और सूर्य के परिवार में ८८-८८ महाग्रहों का उल्लेख हुआ है। प्रश्नव्याकरण में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु केतु या धूमकेतु नौ ग्रहों के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है।
प्रश्नव्याकरण में नक्षत्रों पर चिन्तन अनेक दृष्टियों से किया गया है। जितने भी नक्षत्र हैं उन्हें कुल, उपकुल और कुलोपकुल में विभक्त किया है । प्रस्तुत वर्णन प्रणाली ज्योतिष के विकास को समझने के लिए अपना विशिष्ट स्थान रखती है। धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, उत्तराफाल्गुन, चित्रा, विशाखा, मूल एवं उत्तराषाढ़ा ये नक्षत्र कुल-संज्ञक है । श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, रेवती, भरणी, रोहिणी, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी हस्त, स्वाती, ज्येष्ठा एवं पूर्वाषाढ़ा ये नक्षत्र उपकुल संज्ञक हैं। और अभिजित, शतभिषा, आर्द्रा तथा अनुराधा ये कुलोपकुल संज्ञक हैं । कुलोपकुल का जो विभाजन किया गया है वह पूर्णिमा को होने वाले नक्षत्रों के आधार पर किया गया है। सारांश यह है श्रावण मास में धनिष्ठा, श्रवण और अभिजित; भाद्रपद में उत्तराभाद्रपद, पूर्वभाद्रपद और शतभिषा आदि नक्षत्र बताये गये हैं । प्रत्येक मास की पूर्णिमा को उस मास का प्रथम नक्षत्र कुलसंज्ञक, दूसरा उपकुलसंज्ञक और तृतीय कुलोपकुल संज्ञक हैं । इस वर्णन का तात्पर्य उस महीने का फल प्रतिपादन करना है। प्रस्तुत ग्रन्थ में ऋतु, अयन, मास, पक्ष, तिथि सम्बन्धी विचारचर्चाएँ भी की गयी हैं।
समवायांग में नक्षत्रों की ताराएँ और दिशा द्वारा प्रकृति का भी वर्णन है, जैसे कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा ये सात नक्षत्र पूर्वद्वार के हैं। मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती और विशाखा ये नक्षत्र दक्षिण द्वार के हैं । अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित् और श्रवण ये सात
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