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हिन्दी जैन कवियों को छन्द-योजना
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७१ जन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन, पृष्ठ २४५, डा. महेन्द्रसागर प्रचंडिया। ७२ श्रीसम्मेदाचल पूजा, जवाहरलाल । छहढाला तथा दौलत विलास, दौलतराम । ७३ सप्तर्षि पूजा मनरंग लाल जी; बद्ध मानपुराण, नवलशाह । ७४ वर्तमानपुराण, नवलशाह; छहढाला, दौलतराम तथा श्री सम्मेदशिखर पूजा, जवाहरलाल । ७५ गिरिनार सिद्ध क्षेत्र पूजा, रामचन्द्र। ७६ बुधजन सतसई, बुधजन तथा दौलत विलास, दौलतरामजी । ७७ छहढाला, दौलतराम, श्री सम्मेदशिखर पूजा, जवाहर लाल, श्री पार्श्वनाथ पूजा, बख्तावरजी।
पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा, दौलतराम जी। ७८ श्री सम्मेदशिखर पूजा, जवाहरलाल । ७६ वही, ८० छहढाला, दौलतराम जी, सप्तर्षि पूजा, मनरंगलाल जी। ८१ शीतलनाथ पूजा, मनरंगलाल जी; श्री सम्मेद शिखर पूजा, जवाहरलाल जी, छहढाला, दौलतराम जी । ८२ शीतलनाथ जिन पूजा, मनरंगलाल जी। ८३ श्री सम्मेद शिखर पूजा, रामचन्द्र । ८४ श्री पार्श्वनाथ जिन पूजा, बख्तावरमल जी। ८५ भक्तामर स्तोत्र हिन्दी भाषानुवाद, हेमराज । ८६ जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन, पृष्ठ २५८-डा. महेन्द्रसागर प्रचंडिया ८७ श्री सम्मेदशिखर पूजा, जवाहरलाल जी। ८८ श्री सम्मेदशिखर पूजा, कविवर रामचन्द्रजी; वही, जवाहरलालजी ।
८६ आलोचना पाठ, कविवर श्री जौहरी । -६० शीतलनाथ जिन पूजा, मनरंगलालजी । ११ छहढाला, छठी ढाल, दौलतरामजी ।
-----पुष्क रवाणी-0--0--0--0--0--0--0--0-0-0-0--0-0--0----0--00--0-ory
कपड़ा चाहे जितने विभिन्न रूपों में है, आखिर वह है क्या ? सूत का तानाबाना ! और सूत क्या है-रुई का लम्बा कता हुआ रेशा !
यह देह, चमड़ी चाहे जितनी विभिन्न आकृतियाँ व रूप धारण कर ले आखिर है क्या ? पाँच तत्त्वों का पिण्ड मात्र | और पंचतत्त्व क्या हैं ? पुद्गल समूह मात्र !
फिर कपड़े पर इतना राग और द्वेष क्यों ? देह पर इतनी ममता और घृणा क्यों?
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