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श्री नेमिचन्द्रजी महाराज
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एक कथा दी
बड़े ही सुन्दर ने रावण के ?
दौलत मुनि और हंस मुनि की कम्बल तस्कर ले जाने पर आपश्री ने भजन निर्माण किया जिसमें कवि की सहज प्रतिमा का चमत्कार देखा जा सकता है।
पूज्यश्री पूनमचन्दजी महाराज के जीवन का संक्षेप में परिचय भी दिया है जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
निह्नव सप्तढालिया का ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। कवि मानवता का पुजारी है, मानवता के विरोधियों पर उसकी वाणी अंगार बनकर बरसती है, अनाचार की धुरी की तोड़ने के लिए और युग की तह में छिपी हुई बुराइयों को नष्ट करने के लिए उनका दिल क्रांति से उद्वेलित हो उठा है । वे विद्रोह के स्वर में बोले हैं, उनकी कमजोरियों पर तीखे बाण कसे हैं और साथ ही अहिंसा की गम्भीर मीमांसा प्रस्तुत की है।
पक्खी की चौबीसी में अनेक ऐतिहासिक, पौराणिक और आगमिक कथाएं दी गयी हैं और क्षमा का महत्त्व प्रतिपादन किया गया है । लोक-कथाएँ भी इसमें आयी हैं।
नेम-वाणी के उत्तरार्द्ध में चरित्र कथाएँ हैं। क्षमा के सम्बन्ध में गजसुकुमार, राजा प्रदेशी, स्कन्दक मुनि, और आचार्य अमरसिंहजी महाराज आदि के चार उदाहरण देकर विषय का प्रतिपादन किया है । दान, शील, तप और भावना के चरित्र में एक-एक विषय पर एक-एक कथा दी गया है । नमस्कार महामन्त्र पर तीन कथाएँ दी गई हैं। महाव्रत की सुरक्षा के लिए ज्ञाताधर्म कथा की कथा को कवि ने बड़े ही सुन्दर रूप से चित्रित किया है। लंकापति रावण की प्रेरणा से उत्प्रेरित होकर महारानी मन्दोदरी सीता के सन्निकट पहुँची। उसने रावण के गुणों का उत्कीर्तन किया, किन्तु जब सीता विचलित न हुई और वह उल्टे पैरों लौटने लगी तब सीता ने उसे फटकारते हुए कहा
"पाछी जावण लागी बोल वचन सुण अब को। उभी रहे मन्दोदरी नार लेती जा लब को ।। अब सुण ले मेरी बात राम जो रूठो । थाने लाम्बी पहरासी हाथ हियो क्यों फूटो। थारो अल्प दिनों को सुख जाणजे खूटो। यो सतियों केरो मुख वचन नहीं झूठो ।
मो वचन जो झूठो होय जगत् होय डब को ॥" जब लक्ष्मण ने रावण पर चक्र का प्रयोग किया उस समय का सजीव चित्रण कवि ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि पढ़ते ही पाठक की भुजाएँ फड़फड़ाने लगती हैं । रणभेरी की गूंज, वीर हृदय की कड़क और कायर-जन की धड़क स्पष्ट सुनायी देती है। देखिए
"लक्ष्मण कलकल्यो कोप में परजल्यो,
कड़कड़ी भीड़ ने चक्र वावे । आकाशे ममावियो सणण चलावियो,
जाय वैरी नो शिरच्छेद लावे।।
हरि रे कोपावियो चक्र चलावियो ।। जोधपुर के राजा की लावणी में ऋर काल की छाया का सजीव चित्रण किया गया है। मानव मन में विविध कल्पनाएँ करता है और भावी के गर्भ में क्या होने वाला है उसका उसे पता नहीं होता । चेतन चरित्र में भावना प्रधान चित्र हुआ है । वस्तुतः इस चरित्र में कवि की प्रतिमा का पूर्णरूप से निखार हुआ है। इसमें शान्तरस की प्रधानता है । कवि की वर्णन शैली आकर्षक है।।
इस प्रकार कविवर्य नेमीचन्दजी महाराज की कविता का भाव और कलापक्ष अत्यन्त उज्ज्वल व उदात्त है । जैन श्रमण होने के नाते उनकी कविता में उपदेश की भी प्रधानता है । साथ ही मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष ही उनकी कविता का संलक्ष्य है। कविवर्य का जीवन साधनामय जीवन था और १९८५ वि० सं० में छीपा का आकोला गांव में आपका चातुर्मास था । शरीर में व्याधि होने पर संल्लेखनापूर्वक संथारा कर कार्तिक शुक्ला पंचमी को आप स्वर्गस्थ हुए । आपका विहारस्थल मेवाड़, मारवाड़, मालवा, ढूंढार, प्रमृति रहा है।
आपश्री अपने युग के एक तेजस्वी सन्त थे । आपने विराट कविता साहित्य का सृजन किया । आपकी कविता स्वान्तःसुखाय होती थी। आपने अपने व्यक्तित्व के द्वारा जैनधर्म की प्रबल प्रभावना की। आप दार्शनिक थे, वक्ता थे, कवि थे और इन सबसे बढ़कर सन्त थे। आपका व्यक्तित्व और कृतित्व दिल को लुभाने वाला और मन को मोहने वाला था।
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