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स्वप्न शास्त्र : एक मीमांसा
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(४) चौथे स्वप्न में एक रथ के बड़े-बड़े बैलों को खोलकर छोटे-छोटे बछड़े जोत दिये गये, पर वे भार वहन में असमर्थ रहे।
अर्य-सुयोग्य शासकों को हटाकर अयोग्यों को प्रशासन में जोड़ा जायेगा। पर वे उसका निर्वाह भली-भांति नहीं कर सकेंगे।
(५) पांचवें स्वप्न में देखा कि एक घोड़ा दोनों ओर से खा रहा है अर्थात् मुखद्वार से भी तथा मलद्वार से भी।
अर्थ-शासक गण दोनों ओर से खायेंगे-सामने से नौकरी के पैसे और पीछे से रिश्वत-उत्कोच !
(६) छठे स्वप्न में देखा-खाने का पात्र हाथ में लिए चतुर व्यक्ति बूढ़े सियाल को उसमें मूत्र करने की प्रार्थना कर रहे हैं।
अर्थ-धर्माचार्यों को कुछ स्वार्थी व्यक्ति अपने हाथों की कठपुतली बनायेंगे । वे भी धर्म की ओट में स्वार्थ साधने तत्पर रहेंगे।
(७) सातवें स्वप्न में देखा-एक व्यक्ति बहुत ही परिश्रम से रस्सी बंट रहा था। उसे पास बैठी सियारनी खा रही थी।
अर्थ-पति अथक श्रम कर जो पूंजी कमाकर लायेगा वह सारी तो उन गृह देवियों की सिंगार-सज्जा में ही पूरी हो जायगी।
(८) आठवें स्वप्न में देखा-भरे हुए घड़ों को सब भर रहे हैं। पास में एक खाली घड़ा पड़ा है उसको कोई नहीं देखता है।
अर्थ-धनिकों का धन राज-करों में तथा आराम में पूरा होगा। वे भी धन के बल से स्वर्ग जाना चाहेंगे किन्तु गरीबों पर ध्यान कोई नहीं देगा।
(8) नवें स्वप्न में देखा-तालाब का पानी किनारे-किनारे तो स्वच्छ है बीच में गन्दगी भरी हुई है। जबकि होता यह है कि किनारे पर जल गन्दा होता है और बीच में स्वच्छ होता है।
अर्थ-शासकों के पास में जी हजूरियों का जमघट लगा रहेगा, सज्जन दूर-दूर ही रहेंगे। (१०) दशवाँ स्वप्न यह था कि एक ही बर्तन में तीन तरह के चावल थे---कुछ पके, कुछ अधपके, कुछ कच्चे। अर्थ-अतिवृष्टि, अनावृष्टि तथा सुवृष्टि से फसलों का पाक भी तीन तरह का होगा। (११) ग्यारहवें स्वप्न में देखा-बावना चन्दन तक्र के मूल्य में बिक रहा है।
अर्थ-बड़े-बड़े धर्मगुरु धर्माचार्य धर्म का उपदेश पैसों से देंगे। यानि धर्म भी बाजार में बिकने की चीज मान ली जायेगी।
(१२) बारहवें स्वप्न में देखा-सुन्दर-सुन्दर फल डूब रहे हैं।
अर्थ-अच्छे-अच्छे समझदार और कुशल व्यक्ति भी खुशामदी भक्तों की चिकनी-चुपड़ी बातों में डूब जायेंगे।
(१३) तेरहवें स्वप्न में देखा-बड़ी-बड़ी चट्टानें पैरों में झूल रही है। छोटे-छोटे कंकर स्थान पर जमे पड़े हैं।
अर्थ-सज्जन मनुष्य पैरों में भटकेंगे, जबकि दुर्जन अपनी पांचों अंगुलियां घी में करेंगे। (१४) चौदहवें स्वप्न में देखा-छोटी-छोटी मेंढ़कियां बड़े-बड़े काले नागों को चट कर गई।
अर्थ-हर स्थान में क्षुद्रजनों व नारी जाति का बोलबाला होगा। बलशाली बुद्धिशाली व्यक्ति भी उनको खुश करने में प्रयत्नशील रहेंगे।
(१५) पन्द्रहवें स्वप्न में देखा-सोने के पंख वाली बतख कौवे के पीछे भटक रही है। अर्थ-गुणवान व्यक्ति अभाव से पीड़ित होकर गुण-हीनों के पैरों के तलवे चाटते रहेंगे। (१६) सोलहवें स्वप्न में देखा-बकरी से डर कर सिंह भाग रहा है । अर्थ-शासक वर्ग शासित वर्ग से भयभीत रहेंगे और अपनी जान बचाते छपेंगे।
तथागत के मुंह से ये स्वप्न फल सुनकर राजा कांप उठा । तब बुद्ध ने आश्वासन दिया-राजन् ! तुम्हारे राज्य में यह स्थितियां नहीं आयेंगी।"
चन्द्रगुप्त राजा के १६ स्वप्न पाटलिपुत्र नरेश मौर्य राजा चन्द्रगुप्त ने एक रात कुछ विचित्र स्वप्न देखे । आश्चर्य विमूढ होकर राजा उन
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