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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
(१) गज - चार दांत वाले हाथी को देखने का अर्थ है-चार प्रकार के धर्म की प्ररूपणा करेंगे (श्रावकधाविका, श्रमण-मणी)
(२) वन वृषभ की भाँति धर्म की खेती (बोधि बीज का वनकर) तथा धर्म-थुरा का वहन करेंगे।
(३) सिंह सिंह की माँति पराक्रमी, काम विकार रूप उन्मत्त हाथियों को विदीर्ण करेंगे। विकारों के वनचर सदा ही उनसे दूर रहेंगे ।
(४) लक्ष्मी - त्रिभुवन की समस्त लक्ष्मी - धर्मलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, यशलक्ष्मी उनका वरण करेंगी तथा वे महान् दानी होंगे। साथ ही विपुल ऐश्वर्य उनके चरणों में लोटेगा ।
(५) माला - माला की भाँति सदा प्रसन्न, प्रफुल्ल व सभी को कंठ व मस्तक में धारण योग्य — पूज्यभाव
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युक्त होंगे।
(६) चन्द्र - चन्द्रमा की भांति संसार को शांतिदायक, अमृतवर्षी तथा मव्यात्मारूप कुमुदों को प्रफुल्लित करने वाले होंगे ।
(७) सूर्य-सूर्य की भांति तेजस्वी व अज्ञान अंधकार नष्ट करेंगे ।
(८) ध्वजा - अपने कुल व धर्म-परम्परा की यश ध्वजा फहरायेगा ।
(e) कलश - वंश या धर्मरूपी प्रासाद शिखर पर स्वर्ण कलश की भांति शोभित होंगे। या कुम्भ की तरह धर्मं जल को धारण करने में समर्थ होंगे ।
(११) पद्म-सरोबर - फूलों से खिले सरोवर की भाँति उनका धर्म परिवार सदा फला-फूल खिला हुआ रहेगा और स्वर्ण कमल पर उनका आसन रहेगा ।
(११) समुद्र - समुद्र की तरह अनन्त ज्ञान-दर्शन रूप मणिरत्नों के आगार होंगे, तथा उनकी गंभीरता, शक्तिमत्ता का कोई पार नहीं पा सकेगा । आत्म-गुणों की अक्षमता होगी ।
(१२) विमान - विमानवासी देवों के भी पूज्य होंगे ।
(१३) रत्नराशि - संसार की समस्त धन-संपदा उनके चरणों में लोटेगी और वे उससे निस्पृह रहेंगे । (१४) निर्धूम अग्नि - अग्नि की भाँति अन्तर् विकारों को भस्म करने में समर्थ होंगे, किन्तु फिर भी निर्धूम - निष्प्रकम्प व अक्षुब्ध रहेंगे । कठोर तपश्चरण व ध्यान साधना करते हुए भी बाहर में शांत, सौम्य व तेजयुक्त ही दीखेंगे | २४
दिगम्बर परम्परा के अनुसार तीर्थंकर की माता १६ स्वप्न देखती है। उनमें १३ स्वप्न तो उक्त स्वप्नों के अनुसार ही हैं | आठवें स्वप्न, ध्वजा के स्थान पर मीनयुगल है और सिंहासन तथा नागभवन दो अधिक हैं । मीनयुगल देखने से सुखी होना सुखी मत्स्यपुगेक्षणात् और सिंहासन देखने से भूमंडल की राज्यलक्ष्मी के अधिपति - सिंहासनेन साम्राज्यम् । तथा नागभवन देखने का तात्पर्य है जन्म से ही वह पुत्र अवधिज्ञान से युक्त होगा
फणीन्द्र भवनालोकात् सोऽवधिज्ञानलोचनः । २५
इस प्रकार तीर्थंकरों की माताएँ ये शुभ स्वप्न देखती हैं जो होने वाली सन्तान के और उनकी माता के अनन्त सौभाग्य तथा कल्याण के सूचक होते हैं ।
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार चक्रवर्ति की or after] भौतिक समृद्धि सूचक ही माने जाते हैं
रूप में मानी जाती है वहां चक्रवर्ती की लक्ष्मी प्रायः भौतिक समृद्धियों की ही सूचक है ।
दिगम्बर परम्परा के आचार्य जिनसेन ने भरत चक्रवर्ती की माता का नाम महादेवी यशस्वती बताया है और वे १४ स्वप्न के स्थान पर सिर्फ ६ स्वप्न ही देखती है । २५
(१) सुमेरू पर्वत
(३) चन्द्रमा
(५) हंस सहित सरोबर
माता भी इसी प्रकार के १४ शुभ स्वप्न देखती है, किंतु उनके तीर्थंकर जहाँ धर्म चक्रवर्ती होने से उनकी समृद्धि-धर्म लक्ष्मी
(२) सूर्य
(४) ग्रसी हुई पृथ्वी
(६) चंचल लहरों वाला समुद्र
वासुदेव की माता उक्त १४ स्वप्नों में से कोई भी सात स्वप्न देखती है । बलदेव की माता ४ स्वप्न । माण्डलिक राजा तथा मावितात्मा अणगार की माता कोई मी एक शुभ स्वप्न देखती है जो आने वाली संतान के सौभाग्य का सूचक होता है ।
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