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श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन प्रथ
होकर चलता है अर्थात् एकलक्ष्य-कर्ममुक्ति के लक्ष्य वाला होता है अथवा सर्प एकदृष्टि अर्थात् विषष्टि होता है इसीप्रकार अमण भी एक सम्यगृष्टि होता है। सर्प दृष्टि विष होता है और सन्त कृपादृष्टि होता है ।
श्री पुष्कर मुनि भी उसी श्रमण श्रेणी में हैं अतः आपकी साधना का लक्ष्य भी केवल कर्म मुक्ति है । और सब पर कृपादृष्टि रखने वाले हैं।
ममतं छिन्द ताहे, महानागो व्व कंचुयं ।
- उत्त० अ० १६, गा० ८६
- जिस प्रकार शरीर पर आवृत कंचुक का महानाग परित्याग कर देता है - इसीप्रकार महाश्रमण भी ममत्व कंचुक का परित्याग करके उन्मुक्त होकर विचरता है । १०. पुष्कर - तूर्यमुख (वाद्य-मुख)
बुद्धे परिणिचरे गाममह नगरे व संजह
संतीमग्गं च बृहए, समयं गोयम मा पमायए ॥
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- उत्त० अ० १० गा० ३६
- बुद्ध एवं निवृत्त संयत ग्राम नगर में जाकर शान्तिमार्ग का कथन करे। हे गौतम! इस कार्य में समय मात्र का भी प्रमाद न करे ।
श्री पुष्कर मुनि भी प्रत्येक ग्राम नगर में अमित शान्ति का सन्देश सुनाते हुए एवं अप्रमत्त भाव की आराधना करते हुए विहार करते रहते हैं ।
११. पुष्कर - भाण्डमुख (कुम्भकलशमुख)
जिस प्रकार कुम्भकलश के मुख से कामित रस की प्राप्ति होती है इसी प्रकार श्री पुष्कर मुनि के श्री मुख से कामित 'वचनामृत श्रवणकर भावुक भक्त इष्ट सिद्धि को प्राप्त होते हैं ।
जिस प्रकार बाद्य के मुख से मधुर ध्वनि निकलती है। इसी प्रकार बुद्ध एवं निवृत्त श्रमण के श्रीमुख से प्रत्येक ग्राम नगर में शान्ति का सन्देश प्रसारित होता है ।
वाला होता है ।
४. ससमय परसमयकुसला"
- श्रमण स्वसमय (स्वसिद्धान्त) और परसमय ( परसिद्धान्त) में कुशल होते हैं।
श्री पुष्कर मुनि भी स्व-पर सिद्धान्तों के केवल पण्डित ही नहीं अपितु प्रकाण्ड पण्डित हैं । आपकी अनेक कृतियाँ अनेकानेक पाठकों की ज्ञान वृद्धि के लिए पर्याप्त सामग्री प्रदान कर रही हैं। सतत स्वाध्याय एवं ध्यान से तथा व्युत्पन्नमति श्रुतधर होने से आप प्रवचन कुशल हैं । १३. पुष्कर - खङ्गफल ( तलवार की धार ) असिधारा गमणं चेव, दुक्करं चरिउं तवो । -उत्त० अ० १६, गा० ३७
- जिस प्रकार तलवार की धार पर गमन करना सरल नहीं है इसी प्रकार तप का आचरण करना सरल नहीं है।
३. णिच्च सज्झाय झाणा......
- श्रमण नित्य स्वाध्याय-ध्यान करने वाला होता है ।
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- जिस प्रकार क्षुर- उस्तरा के एक ही इसी प्रकार उत्कृष्ट श्रमण उत्सर्ग मार्ग से लिए प्रयाण करता है ।
जहा जुरो चैव एगधारे ----- ।
- प्रश्न ० सं० ५ धार होती है ही शिवपुर के
- आनन्दघन चौविसी
- श्री पुष्कर मुनि भी उसी भक्तिमार्ग के पथिक हैं और उत्सर्ग मार्ग आराधना की भावना रखते हैं ।
१२. पुष्कर – काण्ड ( स्कन्ध आदि )
१. सुधरविविबुद्धि
- श्रमण श्रतधर होता है अतएव उसकी बुद्धि से अनेकार्थ उद्भूत होते हैं । २. धीरमइ बुद्धिणो"
-श्रमण औत्पातिकी आदि बुद्धियों को धारण करने कषायात्मा का शोषक है।
धार तरवार की सोहली दोहली चउदमा जिनतणी चरणसेवा ।
पुष्कर नाम नानार्थक है और ये नानार्थ उपाध्याय श्री के जीवन में किस प्रकार चरितार्थ हैं यह ज्ञानवृद्धि के लिए यहाँ प्रस्तुत किये गये हैं ।
श्रमण संघ की प्रभावकारी परम्परा में अतीत में अनेकानेक प्रवचन - प्रभावक हुए हैं, वर्तमान में हैं और भविष्य में भी होने की सम्भावना है ही, किन्तु पुष्कर नाम जैसी नानार्थता विरल नामों में ही प्राप्त है। जैनागमों की भाषा में "अलिप्त जीवन" तथा गीता की भाषा में " अनासक्तयोग" पुष्कर नाम में ही सार्थक हैं ।
परम पुण्योदय से यह पुष्कर नाम उपाध्याय श्री को प्राप्त है जो आत्मा के निज स्वभाव का पोषक है । और
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ज्ञानात्मा का दर्शनात्मा एवं चारित्रात्मा का बोधक है । उपयोगात्मा और भावात्मा का शोधक है । वास्तव में यह आध्यात्मिक नाम उपाध्याय श्री को प्राप्त है ।
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