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(३) परमाणु अच्छेद्य, अभेद्य और अविनाशी हैं। वे पूर्ण और सदैव शुद्ध, नवीन और निर्मल हैं जैसे कि संसार की शुरुआत में थे ।
(४) प्रत्येक परमाणु में आकार, लम्बाई, चौड़ाई और वजन को लेकर पृथक्ता होती है ।
पर निर्भर हैं।
दर्शन और विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में पुद्गल : एक विश्लेषणात्मक विवेचन
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(५) परमाणुओं के प्रकार संख्यात हैं, किन्तु उनमें से प्रत्येक प्रकार के परमाणु अनन्त हैं ।
(६) पदार्थों के गुण परमाणुओं के स्वभाव, संविधान अर्थात् कौन से परमाणु किस प्रकार से संयुक्त हुए हैं,
(७) परमाणु निरन्तर गतिशील हैं ।
डेमोक्रेट्स के समय से लेकर वर्तमान समय तक परमाणु के बारे में अन्वेषण का क्रम चालू है और इससे नये तथ्य भी सामने आये हैं, जिनका उल्लेख आगे किया जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों की दृष्टि में अब तक वह परमाणु अच्छेद्य, अभेद्य और न्यूनतम ही बना रहा है। उसके चरम अंश की प्राप्ति नहीं की जा सकी है जैसा जैनदर्शन में बताया गया है ।
जैनदर्शन में तो परमाणु को सूक्ष्मतम बताया है और विज्ञान भी उसे सूक्ष्म मानता है और उसके परमाणु की 'सूक्ष्मता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पचास शंख परमाणुओं का वजन केवल ढाई तोले के लगभग होता है और व्यास एक इंच का दस करोड़वां हिस्सा है। सिगरेट लपेटने के पतले कागज अथवा पतंगी कागज की मोटाई में एक से एक सटाकर परमाणुओं को रखा जाये तो एक लाख परमाणु आ जायेंगे । सोडा वाटर को गिलास में डालने पर जो छोटी-छोटी बूंदें निकलती हैं, उनमें से एक के परमाणुओं को गिनने के लिए संसार के तीन अरब व्यक्तियों को लगाया जाये और वे निरन्तर बिना खाये, पीये, सोये लगातार प्रति मिनट तीन सौ की चाल से गिनते जायें तो उस लघुतम बूंद के परमाणुओं की समस्त संख्या को गिनने में चार माह लग जायेंगे ।
परमाणु : वैज्ञानिक शोध-धारा
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने पहले तो पृथ्वी आदि पंच भूतों को सृष्टि का मूल कारण माना और उसके बाद वे उक्त निर्णय में भी परिवर्तन करने के लिए विवश हुए। इसका कारण यह था कि जब रसायन के क्षेत्र में लोहे या ताँबे को सोना बनाने की होड़ लगी तो निश्चय हुआ कि पंचभूत मूल तत्त्व ही नहीं हैं। मूल तत्व तो इनसे अतिरिक्त और पदार्थ हैं। फिर भी मूल तत्त्व की शोध के आधार पंचभूत ही रहे।
पंचभूतों में वायु भी एक तत्त्व था, लेकिन उसमें मार नहीं माना जाता था। वोयल ने अपने अनुसन्धान पहले पहल बताया कि उसमें भार है । उस समय तक विभिन्न स्वभाववाली गैसों का आविष्कार हो चुका था, किन्तु वे वायु का ही प्रकार मानी जाती थीं। कार्बनडाई आक्साइड का पता पहले पहल इंगलैंड निवासी ब्लैक ने सन् १७५५ में लगाया और इसका नाम स्थिरवायु रखा । अनन्तर आक्सीजन (प्राण वायु) की खोज व्रीस्टली ने की और कहा कि आग को जलाने एवं प्राणधारियों को श्वास लेने के लिये इसकी आवश्यकता होती है । हेन्डीक वेडिन्स ने पानी पर अन्वेषण करके उसे आक्सीजन और हाइड्रोजन के मिश्रण का परिणाम सिद्ध किया कि पानी का स्कन्ध (सूक्ष्मातिसूक्ष्म कम ) हाइड्रोजन के दो परमाणु और आक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर बना है। इससे पानी को मूल द्रव्य मानने की धारणा का अंत हुआ ।
ज्ञात हुआ
इन अन्वेषणों में हाइड्रोजन के परमाणु को सबसे छोटा देखकर पहले समझा गया कि यह सब तत्त्वों का मूल है । लेकिन हाइड्रोजन के परमाणु को भी जब बारीकी से तौल गया तो स्पष्ट हो गया कि वह भी सभी पदार्थों का मूल तत्त्व नहीं हो सकता है। वह भी मिश्रित है और मौलिक द्रव्य की संमिश्रण का परिणाम न हो। इस प्रकार पाँच भूतों से प्रारम्भ हुई मौलिक तत्त्वों की संख्या पहले उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक ३० हो गई और आज तो बढ़ते-बढ़ते १०३ तक पहुँच गई है।
परिभाषा यह मानी गई थी कि वह किसी भी
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सन् १८११ तक अणु ही सबसे सूक्ष्म तत्त्व समझा जाता रहा। इसके बाद वैज्ञानिक अवोगद्रा ने खोजकर अणु से परमाणु को अलग किया और वह सूक्ष्म अवयव माना जाता रहा। इसके बाद सन् १८६७ में सर जे. जे. टामसन ने परमाणु के अन्वेषण के समय एक और टुकड़ा पाया जो छोटे से हाइड्रोजन परमाणु से भी अत्यन्त छोटा था जिसे इलेक्ट्रोन कहा जाता है। उसने अणु के बारे में अभी तक की सभी मान्यताओं को बदल दिया तथा सोना, आदि मूलभूत तत्त्व एक नये रूप में ही पहचाने जाने लगे ।
चाँदी
टामसन के शिष्य सदरफोर्ड ने परमाणु के भीतरी ढांचे के बारे में बहुत सी महत्वपूर्ण शोधें कीं जिनसे परमाणु के नाम से ज्ञात छोटे से छोटे अणु के अन्दर सौर परिवार का एक नया संसार ही बसा हुआ है ।
कि
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