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ॐ .६
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ
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सन्त-परम्परा का एक तेजस्वी नक्षत्र
0 उपाध्याय बहुश्रुत श्री मधुकरमुनि जी महाराज
राजस्थान की वीर-प्रसवा पुण्यभूमि में समय-समय और काव्यतीर्थ की परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की। साथ ही पर सन्त रत्न उत्पन्न होते रहे हैं। जिन्होंने अपने पवित्र आगम साहित्य का और उसके व्याख्या-साहित्य का गहराई चरित्र और तपःपूत वाणी के द्वारा जन-जन के मन में से परिशीलन किया, दर्शन साहित्य का अनुशीलन किया । अभिनव चेतना का संचार किया और भूले बिसरे जीवन साहित्य और संस्कृति का पर्यवेक्षण कर अध्ययन में प्रोढ़ता राहियों को प्रशस्त पथ पर बढ़ने की प्रबल प्रेरणा प्रदान प्राप्त की। उनका अध्ययन विशाल भी है और तलस्पर्शी की, उन्हीं सन्त परम्परा की लड़ी की कड़ी में उपाध्याय भी है। राजस्थान केसरी अध्यात्मयोगी श्री पुष्कर मुनिजी भी हैं। आप श्री की प्रवचन शैली बहुत ही प्रभावपूर्ण है।
पुष्कर मुनिजी से मेरा सर्वप्रथम परिचय विक्रम सं० आप वाणी के देवता हैं। जब आप गम्भीर गर्जना करते हैं १९८० में हुआ था। उस वर्ष मैंने श्रद्धय सद्गुरुवर्य श्री तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आपके प्रवचनों में भाषा जोरावरमल जी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की थी। मेरे की सरलता, भावों की गम्भीरता तथा अध्ययन की गुरुदेव का वर्षावास उस वर्ष मरुधरा की पावन नगरी विशालता का स्पष्ट दिग्दर्शन होता है। प्रवचनों के बीच पाली में था और मरुधरा के तेजस्वी नक्षत्र श्रद्धेय आप ऐसी चुटकी लेते हैं कि श्रोताओं में हंसी के फोब्बारे ताराचन्द जी महाराज का भी वर्षावास वहाँ था जो छूट जाते हैं। भारत के विविध अंचलों में परिभ्रमण करने पुष्कर मुनिजी महाराज के सद्गुरुदेव थे। उस समय के कारण आपकी अनुभव सम्पदा अत्यधिक बढ़ चुकी है। पुष्कर मुनिजी ने आहती दीक्षा ग्रहण नहीं की थी। वे पुष्कर मुनिजी केवल प्रवचनकार ही नहीं, किन्तु लेखनी वैराग्यावस्था में अपने गुरुदेव के पास धार्मिक के भी धनी हैं। उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठतम ग्रन्थों अध्ययन करते थे। उनका नाम अम्बालालजी था । वैरागी की रचना की है। उनकी लौह-लेखनी पर समाज को अम्बालालजी समय-समय पर जहाँ हमारी अवस्थिति थी गर्व है। वहाँ दर्शनार्थ उपस्थित होते थे। मेरे गुरुदेव हस्तरेखा व मैं पुष्कर मुनिजी का सबसे बड़ा सौभाग्य मानता हूँ शारीरिक लक्षणों के ज्ञाता थे। उन्होंने जब आपके शुभ कि उन्हें सुयोग्य शिष्य मिले । “स्वर्णे सौरभम्" "कांचने लक्षण देखे तो श्रद्धेय ताराचन्दजी महाराज से निवेदन मणिसंयोगः" प्रभृति लोकोक्तियाँ पुष्कर मुनि के जीवन में किया कि वैरागी अम्बालाल महान् भाग्यशाली व्यक्ति है, पूर्ण रूप से चरितार्थ हुई हैं । आधुनिक जैन जगत के मव्यइसके हाथ में ध्वजा, पद्म, कमल, मत्स्य आदि अनेक ऐसी भव्य लेखकों में देवेन्द्र मुनि का शीर्षस्थ स्थान है। उनकी रेखाएँ हैं, जो इसके उज्ज्वल भविष्य को बताती हैं। यह अगाध श्रद्धा व सूझबूझ के कारण अभिनन्दन ग्रन्थ अन्य अभिविद्वत्ता के साथ प्रभावशाली वक्ता, अध्यात्मप्रेमी और नन्दन ग्रन्थों से विशिष्ट बनेगा ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है। समाज का कुशल नेतृत्व करने वाला सन्त बनेगा। मुझे यह पुष्कर मुनिजी को मैंने बहुत ही सन्निकटता से देखा लिखते हुए आनन्द हो रहा है कि जैसे मेरे पूज्य गुरुदेव ने है। अनेकों बार लम्बे समय तक साथ रहे हैं। उनके स्नेह भविष्यवाणी की थी आज वे सारी विशेषताएं पुष्कर मुनि सौजन्यपूर्ण सद्व्यवहार ने मुझे सदा प्रभावित किया है। जी में मूर्त रूप में दिखायी दे रही हैं।
मेरी हार्दिक शत-शत मंगल कामना है कि उनकी कीर्तिपुष्कर मुनिजी ने दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् संस्कृत, कौमुदी सदा बढ़ती रहे। उनके विमल विचारों का आलोक प्राकृत, भाषाओं का गम्भीर अध्ययन किया। उन्होंने न्याय जन-जन को मिलता रहे।
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